Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 74
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, 'उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक और अनाबाध-कौन-सा स्थान मानते हो ? सूत्र- ९२७ गणधर गौतम- लोक के अग्र-भाग में एक ऐसा स्थान है, जहाँ जरा नहीं है, मृत्यु नहीं है, व्याधि और वेदना नहीं है । परन्तु वहाँ पहुँचना बहुत कठिन है । सूत्र- ९२८-९३० वह स्थान कौन सा है। केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा-जिस स्थान को महर्षि प्राप्त करते हैं, वह स्थान निर्वाण है, अबाध है, सिद्धि है, लोकाग्र है । क्षेम, शिव और अनाबाध है। भव-प्रवाह का अन्त करनेवाले मुनि जिसे प्राप्त कर शोक से मुक्त हो जाते हैं, वह स्थान लोक के अग्रभाग में शाश्वत रूप से अवस्थित है, जहाँ पहुँच पाना कठिन है। सूत्र - ९३१ गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह सन्देह भी दूर किया । हे संशयातीत ! सर्व श्रुत के महोदधि ! तुम्हें मेरा नमस्कार है। सूत्र-९३२-९३३ इस प्रकार संशय के दूर होने पर घोर पराक्रमी केशीकुमार, महान् यशस्वी गौतम को वन्दना कर-प्रथम और अन्तिम जिनों के द्वारा उपदिष्ट एवं सुखावह पंचमहाव्रतरूप धर्म के मार्ग में भाव से प्रविष्ट हए । सूत्र - ९३४-९३५ ___ वहाँ तिन्दुक उद्यान में केशी और गौतम दोनों का जो यह सतत समागम हुआ, उसमें श्रुत तथा शील का उत्कर्ष और महान् तत्त्वों के अर्थों का विनिश्चय हुआ । समग्र सभा धर्मचर्या से संतुष्ट हुई। अतः सन्मार्ग में समुपस्थित उसने भगवान् केशी और गौतम की स्तुति की कि वे दोनों प्रसन्न रहें। -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-२३ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 74

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