Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक
अध्ययन-२४-प्रवचनमाता
सूत्र - ९३६-९३८
समिति और गुप्ति-रूप आठ प्रवचनमाताएँ हैं । समितियाँ पाँच हैं । गुप्तियाँ तीन हैं। ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान समिति और उच्चार समिति ।
मनो-गुप्ति, वचन गुप्ति और आठवीं प्रवचन माता काय-गुप्ति है । ये आठ समितियाँ संक्षेप में कही गई हैं
इनमें जिनेन्द्र-कथित द्वादशांग-रूप समग्र प्रवचन अन्तर्भूत हैं। सूत्र - ९३९-९४३
संयती साधक आलम्बन, काल, मार्ग और यतना-इन चार कारणों से परिशुद्ध ईर्या समिति से विचरण करे ईर्या समिति का आलम्बन-ज्ञान, दर्शन और चारित्र है । काल दिवस है । और मार्ग उत्पथ का वर्जन है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से यतना चार प्रकार की है । उसको मैं कहता हूँ । सुनो
द्रव्य से-आँखों से देखे । क्षेत्र से-युगमात्र भूमि को देखे । काल से-जब तक चलता रहे तब तक देखे । भाव से-उपयोगपूर्वक गमन करे । इन्द्रियों के विषय और पाँच प्रकार के स्वाध्याय का कार्य छोड़कर मात्र गमन-क्रिया में ही तन्मय हो, उसी को प्रमुख महत्त्व देकर उपयोगपूर्वक चले। सूत्र - ९४४-९४५
क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, वाचालता और विकथा के प्रति सतत उपयोगयुक्त रहे । प्रज्ञावान् संयती इन आठ स्थानों को छोड़कर यथासमय निरवद्य और परिमिति भाषा बोले । सूत्र- ९४६-९४७
गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगैषणा से आहार, उपधि और शय्या का परिशोधन करे । यतनापूर्वक प्रवृत्ति करनेवाला यति प्रथम एषणा में उदगम और उत्पादन दोषों का शोधन करे।
दूसरी एषणा में आहारादि ग्रहण करने से सम्बन्धित दोषों का शोधन करे । परिभोगैषणा में दोष-चतुष्क का शोधन करे। सूत्र- ९४८-९४९
___मुनि ओध-उपधि और औपग्रहिक उपधि दोनों प्रकार के उपकरणों को लेने और रखने में इस विधि का प्रयोग करे । यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने वाला यति दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके ले और रखे। सूत्र-९५०-९५३
उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, सिंघानक, जल्ल, आहार, उपधि-उपकरण, शरीर तथा अन्य कोई विसर्जनयोग्य वस्तु को विवेकपूर्वक स्थण्डिल भूमि में उत्सर्ग करे ।
1.अनापात असंलोक-जहाँ लोगों का आवागमन न हो, और वे दूर से भी न दीखते हों। 2. अनापात संलोक-लोगों का आवागमन न हो, किन्तु लोग दूर से दीखते हों । 3. आपात असंलोक-लोगों का आवागमन हो, किन्तु वे दीखते न हों। 4.आपात संलोक-लोगों का आवागमन हो और वे दिखाई भी देते हों।
इस प्रकार स्थण्डिल भूमि चार प्रकार से होती है।
जो भूमि अनापात-असंलोक हो, परोपघात से रहित हो, सम हो, अशुषिर हो तथा कुछ समय पहले निर्जीव हुई हो-विस्तृत हो, गाँव से दूर हो, बहुत नीचे तक अचित्त हो, बिल से रहित हो, तथा त्रस प्राणी और बीजों
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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