Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
View full book text
________________
N
आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक ही गौचरी के लिए गया हुआ मुनि भी किसी की निन्दा और अवज्ञा नहीं करता है। सूत्र - ६९८
मैं मृगचर्या का आचरण करूँगा । पुत्र ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसे करो- इस प्रकार माता-पिता की अनुमति पाकर वह उपधि को छोड़ता है। सूत्र - ६९९
हे माता ! मैं तुम्हारी अनुमति प्राप्त कर सभी दुःखों का क्षय करनेवाली मृगचर्या का आचरण करूँगा।
पुत्र ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसे चलो। सूत्र-७००-७०१
इस प्रकार वह अनेक तरह से माता-पिता को अनुमति के लिए समझा कर ममत्त्व का त्याग करता है, जैसे कि महानाग कैंचुल को छोड़ता है । कपड़े पर लगी हुई धूल की तरह ऋद्धि, धन, मित्र, पुत्र, कलत्र और ज्ञातिजनों को झटककर वह संयमयात्रा के लिए निकल पड़ा। सूत्र - ७०२-७०७
पंच महाव्रतों से युक्त, पाँच समितियों से समित तीन गुप्तियों से गुप्त, आभ्यन्तर और बाह्य तप में उद्यतममत्त्वरहित, अहंकाररहित, संगरहित, गौरव का त्यागी, त्रस तथा स्थावर सभी जीवों में समदृष्टि-लाभ, अलाभ, सुख, दुःख, जीवन, मरण, निन्दा, प्रशंसा और मान-अपमान में समत्त्व का साधक-गौरव, कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और शोक से निवृत्त, निदान और बन्धन से मुक्त-इस लोक और परलोक में अनासक्त, बसूले से काटने अथवा चन्दन लगाए जाने पर भी तथा आहार मिलने और न मिलने पर भी सम-अप्रशस्त द्वारों से आने वाले कर्मपुद्गलों का सर्वतोभावेन निरोधक महर्षि मृगापुत्र अध्यात्म-सम्बन्धी ध्यानयोगों से प्रशस्त संयम-शासन में लीन हुआ। सूत्र - ७०८-७०९
इस प्रकार ज्ञान, चारित्र, दर्शन, तप और शुद्ध-भावनाओं के द्वारा आत्मा को सम्यक्तया भावित कर-बहुत वर्षों तक श्रामण्य धर्म का पालन कर अन्त में एक मास के अनशन से वह अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त हुआ । सूत्र - ७१०
संबुद्ध, पण्डित और अतिविचक्षण व्यक्ति ऐसा ही करते हैं । वे काम-भोगों से वैसे ही निवृत्त होते हैं, जैसे कि महर्षि मृगापुत्र निवृत्त हुआ। सूत्र-७११-७१२
महान् प्रभावशाली, यशस्वी मृगापुत्र के तपःप्रधान, त्रिलोक-विश्रुत एवं मोक्षरूपगति से प्रधान-उत्तम चारित्र को सुनकर-धन को दुःखवर्धक तथा ममत्वबन्धन को महाभयंकर जानकर निर्वाण के गुणों को प्राप्त करने वाली, सुखावह, अनुत्तर धर्म-धुरा को धारण करो। -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१९ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 60