Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक अध्ययन-११-बहुश्रुतपूजा सूत्र- ३२८
सांसारिक बन्धनों से रहित अनासक्त गृहत्यागी भिक्षु के आचार का मैं यथाक्रम कथन करूँगा, उसे तुम मुझसे सुनो। सूत्र- ३२९
जो विद्याहीन है, और विद्यावान होकर भी अहंकारी है, अजितेन्द्रिय है, अविनीत है, बार-बार असंबद्ध बोलता है-वह अबहुश्रुत है। सूत्र - ३३०
इन पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती है-अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य । सूत्र - ३३१-३३२
जो हँसी-मज़ाक नहीं करता, सदा दान्त रहता है, किसी का मर्म प्रकाशित नहीं करता, अशील न हो, विशील न हो, रसलोलुप न हो, क्रोधी न हो, सत्य में अनुरक्त हो, इन आठ स्थितियों में व्यक्ति शिक्षाशील होता है। सूत्र-३३३-३३६
चौदह प्रकार से व्यवहार करनेवाला संयत-मुनि अविनीत कहलाता है और वह निर्वाण प्राप्त नहीं करता। जो बार बार क्रोध करता है, क्रोध को लम्बे समय तक बनाये रखता है, मित्रता को ठुकराता है, श्रुत प्राप्त कर अहंकार करता है-स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार करता है, मित्रों पर क्रोध करता है, प्रिय मित्रों की भी एकान्त में बुराई करता है-असंबद्ध प्रलाप करता है, द्रोही है, अभिमानी है, रसलोलुप है, अजितेन्द्रिय है, असंविभागी है और अप्रीतिकर है । वह अविनीत है। सूत्र-३३७-३४०
पन्द्रह कारणों से सुविनीत कहलाता है
जो नम्र है, अचपल है, दम्भी नहीं है, अकुतूहली है-किसी की निन्दा नहीं करता, जो क्रोध को लम्बे समय तक पकड़ कर नहीं रखता, मित्रों के प्रति कृतज्ञ है, श्रुत को प्राप्त करने पर अहंकार नहीं करता-स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार नहीं करता । मित्रों पर क्रोध नहीं करता । जो अप्रिय मित्र के लिए भी एकान्त में भलाई की ही बात करता है-वाक्-कलह और मारपीट, नहीं करता, अभिजात है, लज्जाशील है, प्रतिसंलीन वह बुद्धिमान् साधु विनीत होता है। सूत्र - ३४१
जो सदा गुरुकुल में रहता है, योग और उपधान में निरत है, प्रिय करनेवाला और प्रियभाषी है, वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है। सूत्र-३४२
जैसे शंख में रखा हुआ दूध स्वयं अपने और अपने आधार के गुणों के कारण दोनों ओर से सुशोभित रहता है, उसी तरह बहुश्रुत भिक्षु में धर्म, कीर्ति और श्रुत भी सुशोभित होते हैं। सूत्र - ३४३
जिस प्रकार कम्बोज देश के अश्वो में कन्धक घोड़ा जातिमान और वेग में श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत श्रेष्ठ होता है। सूत्र-३४४
जैसे जातिमान् अश्व पर आरूढ दृढ पराक्रमी शूरवीर योद्धा दोनों तरफ होनेवाले नन्दी घोषों से-सुशोभित
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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