Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 54
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक गति प्राप्त की । इक्ष्वाकु कुल के राजाओं में श्रेष्ठ नरेश्वर, विख्यातकीर्ति, घृतिमान् कुन्थुनाथ ने अनुत्तर गति प्राप्त की। सागर पर्यन्त भारतवर्ष को छोड़कर, कर्म-रज को दूर करके नरेश्वरों में श्रेष्ठ 'अर' ने अनुत्तर गति प्राप्त की। भारतवर्ष को छोड़कर, उत्तम भोगों को त्यागकर 'महापद्म' चक्रवर्ती ने तप का आचरण किया ।शत्रुओं का मानमर्दन करने वाले हरिषेण चक्रवर्ती ने पृथ्वी पर एकछत्र शासन करके फिर अनुत्तर गति प्राप्त की। हजार राजाओं के साथ श्रेष्ठ त्यागी जय चक्रवर्ती ने राज्य का परित्याग कर जिन-भाषित संयम का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की।" सूत्र-६०३-६०४ साक्षात् देवेन्द्र से प्रेरित होकर दशार्णभद्र राजा ने अपने सब प्रकार से प्रमुदित दशार्ण राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली और मुनि-धर्म का आचरण किया। विदेह के राजा नमि श्रामण्य धर्म में भली-भाँति स्थिर हए, अपने को अति विनम्र बनाया। सूत्र - ६०५-६०६ कलिंग में करकण्डु, पांचाल में द्विमुख, विदेह में नमि राजा और गन्धार में नग्गति- राजाओं में वृषभ के समान महान् थे। इन्होंने अपने-अपने पुत्र को राज्य में स्थापित कर श्रामण्य धर्म स्वीकार किया। सूत्र - ६०७-६१० सौवीर राजाओं में वृषभ के समान महान् उद्रायण राजा ने राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली, मुनि-धर्म का आचरण किया और अनुत्तर गति प्राप्त की । इसी प्रकार श्रेय और सत्य में पराक्रमशील काशीराज ने काम-भोगों का परित्याग कर कर्मरूपी महावन का नाश किया। अमरकीर्ति, महान् यशस्वी विजय राजा ने गुण-समृद्ध राज्य को छोड़कर प्रव्रज्या ली। अनाकुल चित्त से उग्र तपश्चर्या करके राजर्षि महाबल ने अहंकार का विसर्जन कर सिद्धिरूप उच्च पद प्राप्त किया। सूत्र-६११ इन भरत आदि शूर और दृढ पराक्रमी राजाओं ने जिनशासन में विशेषता देखकर ही उसे स्वीकार किया था । अतः अहेतुवादों से प्रेरित होकर अब कोई कैसे उन्मत्त की तरह पृथ्वी पर विचरण करे? सूत्र - ६१२ मैंने यह अत्यन्त निदानक्षम-सत्य-वाणी कही है। इसे स्वीकार कर अनेक जीव अतीत में संसार-समुद्र से पार हुए हैं, वर्तमान में पार हो रहे हैं और भविष्य में पार होंगे। सूत्र-६१३ धीर साधक एकान्तवादी अहेतुवादों में अपने-आप को कैसे लगाए ? जो सभी संगों से मुक्त है, वही नीरज होकर सिद्ध होता है। ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-१८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 54

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