Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन'
अध्ययन/सूत्रांक इन्कार कर दे तो जो निर्ग्रन्थ उनके प्रति द्वेष नहीं रखता है, वह भिक्षु है । सूत्र - ५०६
गृहस्थों से विविध प्रकार के अशनपान एवं खाद्य-स्वाद्य प्राप्त कर जो मन-वचन-काया से अनुकंपा नहीं करता है, अपि तु मन, वचन और काया से पूर्ण संवृत रहता है, वह भिक्षु है। सूत्र-५०७
ओसामन, जौ से बना भोजन, ठंडा भोजन, कांजी का पानी, जौ का पानी-जैसे नीरस भिक्षा की जो निंदा नहीं करता है, अपि तु भिक्षा के लिए साधारण घरों में जाता है, वह भिक्षु है । सूत्र - ५०८
संसार में देवता, मनुष्य और तिर्यंचों के जो अनेकविध रौद्र, अति भयंकर और अदभुत शब्द होते हैं, उन्हें सुनकर जो डरता नहीं है, वह भिक्षु है। सूत्र- ५०९
लोकप्रचलित विविध धर्मविषयक वादों को जानकर भी जो ज्ञान दर्शनादि स्वधर्म में स्थित रहता है, कर्मों को क्षीण करने में लगा है, शास्त्रों का परमार्थ प्राप्त है, प्राज्ञ है, परीषहों को जीतता है, सब जीवों के प्रति समदर्शी और उपशान्त है, किसी को अपमानित नहीं करता है, वह भिक्षु है। सूत्र- ५१०
जो शिल्पजीवी नहीं है, जिसका अगृही है, अमित्र है, जितेन्द्रिय है, परिग्रह से मुक्त है, अणुकषायी है, नीरस और परिमित आहार लेता है, गृहवास छोड़कर एकाकी विचरण करता है, वह भिक्षु है । -ऐसा मैं कहता हूँ।
अध्ययन-१५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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