Book Title: Agam 43 Uttaradhyayan Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 49
________________ आगम सूत्र ४३, मूलसूत्र-४, ‘उत्तराध्ययन' अध्ययन/सूत्रांक स्त्रियों से आकीर्ण स्थान, मनोरम स्त्री-कथा, स्त्रियों का परिचय, उनकी इन्द्रियों को देखना, उनके कूजन, रोदन, गीत और हास्ययुक्त शब्दों का सुनना, भुक्त भोगों और सहावस्थान को स्मरण करना, प्रणीत भोजन-पान, मात्रा से अधिक भोजन पान, शरीर को सजाने की इच्छा, दुर्जय काम भोग-ये दस आत्मगवेषक मनुष्य के लिए तालपुट विष के समान है । एकाग्रचित्त वाला मुनि दुर्जय कामभोगों का सदैव त्याग करे और सब प्रकार के शंकास्थानों से दूर रहे। सूत्र - ५३६ जो धैर्यवान है, धर्मरथ का चालक सारथि है, धर्म के आराम में रत है, दान्त है, ब्रह्मचर्य में सुसमाहित है, वह भिक्षु धर्म के आराम में विचरण करता है। सूत्र - ५३७ जो दुष्कर ब्रह्मचर्य पालन करता है, उसे देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर-सभी नमस्कार करते हैं । सूत्र-५३८ वह ब्रह्मचर्य-धर्म ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है और जिनोपदिष्ट है । इस धर्म के द्वारा अनेक साधक सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं, और भविष्य में भी होंगे। -ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-१६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(उत्तराध्ययन) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 49

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