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दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति : एक अध्ययन
७७८ से ७८४)१६ उत्तराध्ययननियुक्ति में (गाथा १६४ से १७८) १७ प्राप्त होना भी यही सिद्ध करता है कि आवश्यकनियुक्ति के बाद ही उत्तराध्ययननियुक्ति आदि अन्य निर्युक्तियों की रचना हुई है। आवश्यकनियुक्ति के बाद दशवैकालिकनिर्युक्ति की रचना हुई है और इसके बाद प्रतिज्ञागाथा के क्रमानुसार अन्य नियुक्तियों की रचना की गई। इस कथन की पुष्टि उत्तराध्ययननियुक्ति के सन्दर्भों से होती है।
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२. उत्तराध्ययननिर्युक्ति गाथा २९ के 'विणओ पुव्वुद्दिट्ठा' अर्थात् विनय के सम्बन्ध में हम पहले कह चुके हैं।" इस उल्लेख का तात्पर्य यह है कि इससे पूर्व रचित नियुक्ति में विनय सम्बन्धी विवेचन था । दशवैकालिकनिर्युक्ति में विनय समाधि नामक नवें अध्ययन की नियुक्ति (गाथा ३०९ से ३२६ ) में 'विनय' शब्द की व्याख्या से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है । १९ इसीप्रकार उत्तराध्ययननियुक्ति (गाथा २०७) में ‘कामापुव्वुद्दिट्ठा’२० से सूचित विवेचन भी हमें दशवैकालिकनिर्युक्ति की गाथा १६१ से १६३ में प्राप्त हो जाता है । २१ उपर्युक्त दोनों सूचनायें सिद्ध करती हैं कि उत्तराध्ययननियुक्ति दशवैकालिकनियुक्ति के बाद ही लिखी गयी थी ।
३. आवश्यकनिर्युक्ति के बाद दशवैकालिकनिर्युक्ति और फिर उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना तो पूर्व चर्चा से सिद्ध हो चुकी है । इनके पश्चात् आचाराङ्गनिर्युक्ति की रचना हुई है, क्योंकि आचाराङ्गनिर्युक्ति की गाथा पाँच में कहा गया है— 'आयारे अंगम्मि य पुव्वुद्दिट्ठा चउक्कयं निक्खेवो' आचार और अङ्ग के निक्षेपों का विवेचन पहले हो चुका है। २२ दशवैकालिकनियुक्ति में 'क्षुल्लकाचार' अध्ययन की निर्युक्ति (गाथा ७९-८८) में 'आचार' शब्द के अर्थ का विवेचन तथा उत्तराध्ययननियुक्ति में 'चतुरङ्ग' अध्ययन की नियुक्ति करते हुए गाथा १४३ - १४४ में 'अङ्ग' शब्द का विवेचन किया गया है । २३ अतः यह सिद्ध हो जाता है कि आवश्यक, दशवैकालिक एवं उत्तराध्ययन के पश्चात् ही आचाराङ्गनिर्युक्ति का रचनाक्रम है।
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इसीप्रकार आचाराङ्ग की चतुर्थ 'विमुक्तिचूलिका' की नियुक्ति में 'विमुक्ति' शब्द की नियुक्ति के क्रम में गाथा १३१ में लिखा है कि 'मोक्ष' शब्द की नियुक्ति के अनुसार ही 'विमुक्ति' शब्द की भी नियुक्ति समझें । २४ उत्तराध्ययन के अट्ठाइसवें अध्ययन की निर्युक्ति (गाथा ४९७-९८) में मोक्ष शब्द की नियुक्ति होने से २५ यही सिद्ध हुआ कि आचाराङ्गनिर्युक्ति का क्रम उत्तराध्ययन के पश्चात् है। आवश्यकनिर्युक्ति, दशवैकालिकनिर्युक्ति, उत्तराध्ययननियुक्ति एवं आचाराङ्गनिर्युक्ति के पश्चात् सूत्रकृताङ्गनिर्युक्ति का क्रम है। यह सूत्रकृताङ्गनियुक्ति की गाथा ९९ में उल्लिखित 'धर्म' शब्द के निक्षेपों का विवेचन पूर्व में हो चुका है (धम्मो पुव्वुद्दिट्ठो) इस उल्लेख से ज्ञात होता है। २६ दशवैकालिकनिर्युक्ति में दशवैकालिकसूत्र की प्रथम गाथा का विवेचन करते