Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Ek Adhyayan
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 185
________________ १६८ दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन ओदइयाईयाणं भावाणं जा जहिं भवे ठवणा। भावेण जेण य पुणो, ठविज्जए भावठवणा उ॥५५॥ सामित्ते करणम्मि य, अहिगरणे चेव होंति छब्भेया। एगत्तपुहत्तेहिं, दव्वे खेत्तद्धभावे य॥५६॥ कालो समयादीओ, पगयं समयम्मि तं परूवेस्सं। निक्खमणे य पवेसे, पाउससरए य वोच्छामि ॥५७॥ उणाइरित्त मासे अट्ठ विहरिऊण गिम्हहेमंते। एगाहं पंचाहं, मासं च जहा समाहीए ॥१८॥ औदयिकादिकानां भावानां या यत्र भवेत् स्थापना । भावेन येन च पुनः स्थापयेत् भावस्थापना तु ॥५५॥ स्वामित्वे करणे चाधिकरणे चैव भवन्ति षड्भेदाः। एकत्वपृथक्त्वैः द्रव्ये क्षेत्रकालभावे च ॥५६॥ कालः समयादिकः प्रकृतं समये तत्प्ररूपयिष्यामि । निष्क्रमणे च प्रवेशे, पावृट्-शरदोः च वक्ष्यामि ॥५७॥ ऊनातिरिक्तमासे, अष्टसु विहृत्य ग्रीष्महेमन्तयोः । एकाहं पञ्चाहं मासं च यथा समाख्यातम् ॥१८॥ (पर्युषणा की जाती है) और काल (स्थापना-निक्षेप) जिस काल में स्थापना की जाती है।।५४।। औदयिक आदि भावों की जिस भव में स्थापना की जाती है या पुनः जिस भाव से स्थापना की जाती है, वह भाव स्थापना-पर्युषणा है।।५५।। एकत्व एवं पृथक्त्व के आधार पर द्रव्य के स्वामित्व, करण और अधिकरण की दृष्टि से छः भेद होते हैं, इसीप्रकार क्षेत्र, काल और भाव के भेदों के विषय में (कथन करना चाहिए)।।५६।। प्रस्तुत समय अधिकार में उस काल अर्थात् समयादिक का निरूपण करूँगा, ऋतुबद्ध क्षेत्र से वर्षा ऋतु में निर्गमन और शरद ऋतु में प्रवेश- यह कहता हूँ।।५७।। ग्रीष्म (के चार मास) और हेमन्त (शीतऋतु के चार मास) में अर्थात् आठ माह से कम या अधिक विहार करना चाहिए। यह विहार आठ महीने से एक दिन, पाँच दिन और मास पर्यन्त जिस प्रकार कम या अधिक होता है (उसे कहता हूँ)।।५८।।

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