Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Ek Adhyayan
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 194
________________ १७७ दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति मूल-छाया-अनुवाद भासणे संपाइमवहो दुण्णेओ नेहछेओ तइयाए । इरियचरियासु दोसुवि अपेहअपमज्जणे पाणा ॥८९। मणवयणकायगुत्तो दुच्चरियाइं तु खिप्पमालोए। अहिगरणम्मि दुरूयग पज्जोए चेव दमए य ॥१०॥ एगबइल्ला भंडी पासह तुब्भे य डज्झ खलहाणे । हरणे झामणजत्ता, भाणगमल्लेण घोषणया ॥११॥ अप्पिणह तं बइल्लं दुरुतग्ग! तस्स कुंभयारस्स। मा भे डहीहि गाम अन्नाणि वि सत्त वासाणि ॥१२॥ भाषणे संपातिमवधो दुर्जेयः स्नेहछेदस्तृतीये । ईर्याचर्यासु द्वयोरपि अप्रेक्ष्याप्रमार्जने प्राणाः ॥८९॥ मनवचनकायगुप्तः दुश्चरितानि तु क्षिप्रमालोचयेत् । अधिकरणे द्विरुक्तकः प्रद्योतश्चैव द्रमकश्च ॥१०॥ एकबलीवर्दी शकटिकां पश्य, यूयमपि दह्यमानखलधान्यम्। हरणे दहनं भाणकमल्लेन घोषणया ॥११॥ अर्पय तं बलीव, द्विरुक्तक! तस्मै कुम्भकाराय । मा भोः! दह ग्रामम्, अन्यान्यपि सप्तवर्षाणि ॥१२॥ भाषण समिति से (युक्त न होने पर) उड़ने वाले दुर्जेय (जीवाणुओं) का वध, तृतीय (एषणा समिति से युक्त न होने पर) दुर्जेय अप्काय जीवों का वध, ईर्या समिति और अन्तिम दो (आदान-निक्षेप और परिस्थापना समिति से युक्त न होने पर) बिना देखे, प्रमार्जित किये आचरण करने पर जीवों का वध होता है।।८९।।। जो कुत्सित आचरण हैं उनकी शीघ्र आलोचना मन, वचन और काय गुप्ति से करनी चाहिए, पापजनक क्रिया या असंयमित आचरण में द्विरुक्तक, राजाप्रद्योत और द्रमक का दृष्टान्त (दिया जाता है)।।९।। (द्विरुक्तक का कथन) देखो! एक बैलवाली गाड़ी, (कुम्भकार का प्रत्युत्तर) तुम लोग भी जल रहे खलिहान (को देखो) (बैल) हरने पर प्रयत्न से (खलिहान) जला दिया, (ग्रामवासियों ने) उद्घोषक से घोषणा करवायी, हे द्विरुक्तक! उस कुम्भकार को बैल दे दो, (हे कुम्भकार) सात वर्ष तक हमारे ग्राम (के खलिहान) को जलाने के बाद पुनः मत जलाना।।९१-९२।।

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