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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
प्रो०एच०आर०कापडिया२१ के अनुसार छेद का अर्थ छेदन और छेदसूत्र का अभिप्राय उस शास्त्र से लिया जा सकता है जिसमें उन नियमों का निरूपण है जो श्रमणों द्वारा नियमों का अतिक्रमण करने पर उनकी वरिष्ठता (दीक्षापर्याय) का छेदन करते हैं।
कापडिया के मत में इस विषय में दूसरा और अधिक तर्कसङ्गत आधार पञ्चकल्पभास की इस गाथा के आलोक में प्रस्तुत किया जा सकता है- परिणाम अपरिणामा अइपरिणामा य तिविहा पुरिसा तु। णातूणं छेदसुत्तं परिणामणे होति दायव्यं।। इस गाथा से यह निष्कर्ष निकलता है कि शास्त्रों का वह समूह जिसकी शिक्षा केवल परिणत (ग्रहण सामर्थ्य वाले) शिष्यों को ही दी जा सकती है, अपरिणत और अतिपरिणत को नहीं वह छेदसूत्र कहा जाता है।
छेदसूत्रों के नामकरण के सम्बन्ध में आचार्य देवेन्द्र मुनि२३ ने भी तर्क प्रस्तुत किये हैं। उन्होंने पहले प्रश्न किया कि अमुक आगमों को छेदसूत्र यह अभिधा क्यों दी गयी? पुनः उत्तर देते हुए कहा इस प्रश्न का उत्तर प्राचीन ग्रन्थों में सीधा और स्पष्ट प्राप्त नहीं है। हाँ यह स्पष्ट है कि जिन सूत्रों को 'छेदसूत्र' कहा गया है वे प्रायश्चित्तसूत्र हैं। आचार्य देवेन्द्रमुनि का अभिमत है कि श्रमणों के पाँच चारित्रों- १. सामायिक, २. छेदोपस्थापनीय, ३. परिहारविशुद्धि, ४. सूक्ष्मसम्पराय ५. और यथाख्यातमें से अन्तिम तीन चारित्र वर्तमान में विच्छिन्न हो गये हैं। सामायिक चारित्र स्वल्पकालीन होता है, छेदोपस्थापनिय चारित्र ही जीवनपर्यन्त रहता है। प्रायश्चित्त का सम्बन्ध भी इसी चारित्र से है। सम्भवत: इसी चारित्र को लक्ष्य में रखकर प्रायश्चित्त सूत्रों को छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो।
आचार्य ने दूसरी सम्भावना प्रस्तुत करते हुए कहा कि आ.वृ. (मलयगिरि) में छेदसूत्रों के लिए पद-विभाग, समाचारी शब्द का प्रयोग हुआ है। पद-विभाग और छेद- ये दोनों शब्द समान अर्थ को अभिव्यक्त करते हैं। सम्भवत: इसी दृष्टि से छेदसूत्र नाम रखा गया हो क्योंकि छेदसूत्रों में एक सूत्र का दूसरे सूत्र से सम्बन्ध नहीं है, सभी सूत्र स्वतन्त्र हैं। उनकी व्याख्या भी छेद दृष्टि से या विभाग-दृष्टि से की जाती है। ___ उनके मत में तीसरी सम्भावना यह हो सकती है कि दशाभुतस्कन्ध, बृहत्कल्प और व्यवहार नौवें प्रत्याख्यान पूर्व से उद्धृत किये गये हैं, उससे छिन्न अर्थात् पृथक् करने से उन्हें छेदसूत्र की संज्ञा दी गई हो। छेदसूत्रों की संख्या
पञ्चकल्प के विलुप्त होने के पश्चात् जीतकल्प छठे छेदसूत्र के रूप में समाविष्ट कर लिया गया। कापडिया२४ का अभिमत है कि यद्यपि वे पञ्चकल्प के स्वतन्त्र ग्रन्थ