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नियुक्ति-संरचना और दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति अनयोगद्वार में अनुपस्थित है।
नो आगम द्रव्य निक्षेप के अवान्तर भेद-ज्ञायक, भव्य और व्यतिरिक्त दोनों में समान हैं। परन्तु जहाँ अनुयोगद्वार में ज्ञायक शरीर के चार उपभेद व्यपगत, च्युत, च्यावित और त्यक्त मिलते हैं, वहीं षट्खण्डागम में अन्तिम तीन भेद च्युत, च्यावित और त्यक्त ही प्राप्त होते हैं। परन्तु ये षट्खण्डागम में प्रत्यक्ष रूप से ज्ञायक शरीर के उपभेद नहीं हैं बल्कि इसके तीन भेदों भूत, वर्तमान, भावी में से एक भूत ज्ञायक शरीर के भेद हैं। त्यक्त भूत ज्ञायक शरीर के तीन प्रभेद भक्तप्रत्याख्यान, इङ्गिनी, प्रायोपगमन हैं, जबकि अनयोगद्वार में ज्ञायक शरीर के चारों भेद व्यपगत आदि ही बताये गये हैं। उनके अन्य प्रभेदों का कोई उल्लेख नहीं है। नियुक्ति साहित्य में भी भक्तप्रत्याख्यान एवं इङ्गिनी का निक्षेप क्रम में उल्लेख है। नो आगम द्रव्य निक्षेप के भेद व्यतिरिक्त शरीर के अनुयोगद्वार में लौकिक, कुप्रावचिनक और लोकोत्तरिक तीन भेद ही मिलते हैं जबकि षट्खण्डागम में इसे पहले कर्म और नोकर्म में वर्गीकृत किया गया है। तत्पश्चात् नोकर्म को लौकिक और लोकोत्तर में, फिर दोनों को सचित्त, अचित्त और मिश्र में वर्गीकृत किया गया है। यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है कि नियुक्ति साहित्य में सचित्त, अचित्त, मिश्र के भी नौ-नौ भेद किये गये हैं।
अनुयोगद्वार में सद्भाव स्थापना निक्षेप के क्रम में वर्णित प्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम और संघातिम का षद्खण्डागम में द्रव्यनिक्षेप के विवरण क्रम में तद्व्यतिरिक्त शरीर के भेद के रूप में उल्लेख है। यहाँ इन चारों के अतिरक्ति वादिम, अहोदिम, णिक्खेदिम, उद्वेलिम, वर्ण, चूर्ण, गन्ध और विलेपन भी वर्णित है। ___ भाव निक्षेप के भेद-प्रभेदों में दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों में पर्याप्त अन्तर है। दोनों में इसके आगम और नोआगम भेद तो समान हैं किन्तु अनयोगद्वार में नोआगम को लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक में वर्गीकृत किया गया है जबकि षट्खण्डागम में यह उपर्युक्त और तत्परिणत में वर्गीकृत किया गया है। अनुयोगद्वार में आगम भाव निक्षेप के अवान्तर भेदों का अभाव है जबकि पद्खण्डागम में स्थित, जित आदि इसके अवान्तर भेद बताये गये है।
इसप्रकार दोनों ग्रन्थों के विवरण के आधार पर निक्षेप सिद्धान्त के भेद-प्रभेदों की दृष्टि से उनमें साम्यासाम्य प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। नियुक्ति साहित्य के अध्ययन से इस पर अतिरिक्त प्रकाश पड़ने की प्रबल सम्भावना है। नियुक्ति साहित्य में शब्दों के निक्षेप में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चतुष्क निक्षेपों की प्रधानता है। साथ ही इसमें दस विध, एकादश विध और सत्रह विध निक्षेप से शब्दों की व्याख्या की गई है। उदाहरण स्वरूप उत्तर शब्द की व्याख्या सत्रह निक्षेपों के आधार पर की गई है।