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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
भाव निक्षेप अनुयोगद्वार
आगम
नो आगम
लौकिक
कुप्रावचनिक
लोकोत्तरिक
भावनिक्षेप षट्खण्डागम
आगम
नो आगम
स्थित जित परिजित वाचनोपगत सत्रसम अर्थसम ग्रन्थसम नामसम छन्दसम
___ उपयुक्त तत्परिणत __ अनुयोगद्वार और पट्खण्डागम में प्राप्त निक्षेप सिद्धान्त के साम्यासाम्य का दिग्दर्शन कराने हेतु प्रस्तुत सारिणी के अवलोकन से प्राप्त मुख्य तथ्यों को इस रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। जहाँ तक नाम निक्षेप का प्रश्न है दोनों ग्रन्थों में विवरण समान है। अन्तर इतना है कि अनुयोगद्वार में नाम निक्षेप के आठ अवान्तर भेद बता दिये गये हैं जबकि षट्खण्डागम में नाम निक्षेप के जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया भेद किये गये हैं तत्पश्चात् उक्त द्रव्य निक्षेप के आठ अवान्तर भेद बताये गये हैं। स्थापना-निक्षेप के विवेचन-क्रम में हम पाते हैं कि दोनों ग्रन्थों में इसको सद्भाव और असद्भाव में समान रूप से वर्गीकृत किया गया है। इसका दूसरा भेद-असद्भाव निक्षेप अक्ष, वाराटक आदि में स्थापना दोनों में समरूप है। परन्तु सद्भाव स्थापना निक्षेप के अवान्तर भेदों में अन्तर है। अनुयोगद्वार एवं पट्खण्डागम में काष्ठकर्म, चित्रकर्म, लेप्यकर्म उभयनिष्ठ हैं। परन्तु अनुयोगद्वार में प्राप्त ग्रन्थिम, वेष्टिम, पूरिम, संघातिम का षट्खण्डागम में द्रव्य निक्षेप के नोआगम द्रव्य के प्रभेद के रूप में उल्लेख है। साथ ही षट्खण्डागम में प्राप्त सद्भाव स्थापना के लयन कर्म, शैलकर्म, गृहकर्म, भित्ति कर्म, दन्तकर्म और भेंडकर्म अनुयोगद्वार में अनुपलब्ध हैं। __द्रव्य निक्षेप के, जिसका सर्वाधिक विस्तृत रूप नियुक्ति साहित्य में प्राप्त होता है, विवरण में भी दोनों ग्रन्थों में पर्याप्त भिन्नता हैं। द्रव्य निक्षेप के मुख्यत: दो भेद हैं- आगम और नो आगम। आगम द्रव्य निक्षेप के प्रभेद-स्थित, जित, परिजित, वाचनोपगत, नामसम और घोषसम, ये दोनों में समान है परन्तु अनुयोगद्वार में उल्लिखित मित, अहीनाक्षर, अन्त्याक्षर, अव्याविद्धाक्षर, अस्खलित, अमिलित, अव्यातामेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोष और कण्ठोष्ठविप्रमुक्त का षड्खण्डागम में कोई सूचना नहीं है। पखण्डागम में प्राप्त सूत्रसम, अर्थसम और ग्रन्थसम