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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन . गाथाओं के आलोक में सम्पूर्ण उत्तरार्द्ध को बदलने पर छन्द की दृष्टि से शुद्ध होती हैं।
इस नियुक्ति की गाथाओं से, गाथाओं के समानान्तर पाठालोचन के क्रम में कुछ अन्य उल्लेखनीय तथ्य भी हमारे समक्ष आते हैं। जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है गाथा सं० ८२ के चारों चरण, नि०मा० की दो गाथाओं ३१६९ और ३१७० में प्राप्त होते हैं। ___ इसीप्रकार गाथा सं०८६ में प्राप्त 'संविग्ग' और 'निद्दओ भविस्सई' के स्थान पर नि०मा० की गाथा ३१७४ में क्रमश: ‘सचित्त' और होहिंतिणिधम्मो' प्राप्त होता है। इन दोनों गाथाओं में शब्दों का अन्तर होने पर भी मात्राओं का समायोजन इस प्रकार है कि छन्द-रचना की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं पड़ता है।
द०नि० में दृष्टान्तकथाओं को, एक या दो गाथाओं में उनके प्रमुख पात्रों तथा घटनाओं को सूचित करने वाले शब्दों के माध्यम से वर्णित किया गया है। इङ्गित नामादि भी समानान्तर गाथाओं में भिन्न-भिन्न रूप में प्राप्त होते हैं। पर इनमें भी मात्राओं का समायोजन इसप्रकार है कि छन्द-योजना अप्रभावित रहती है। चम्पाकुमारनन्दी (गाथा ९३) के स्थान पर नि०भा० ३१८२ में चंपा अणंगसेनो और वणिधूयाऽच्चकारिय (१०४) के स्थान पर धणधूयाऽच्चंकारिय (नि०भा० ३१९४) प्राप्त होता है।
जो गाथायें छन्द की दृष्टि से शुद्ध भी हैं उनकी समानान्तर गाथाओं में भी छन्द-भेद और पाठ-भेद प्राप्त होते हैं। नियुक्ति की गाथा सं० ३ 'बाला मंदा' स्थानाङ्ग, दशवकालिकनियुक्ति, तन्दुलवैचारिक, नि०मा० और स्थानान-अभयदेववृत्ति में पायी जाती है। इन ग्रन्थों में यह गाथा चार भिन्न-भिन्न गाथा छन्दों में निबद्ध है और सभी छन्द की दृष्टि से शुद्ध है। द०नि० में यह गाथा ६० मात्रा वाली उद्गाथा, स्थानाङ्ग, द०नि० और स्थानावृत्ति में यह गाथा ५७ मात्रा वाली गौरी गाथा में व प्रकीर्णक तन्दुलवैचारिक में क्षमा गाथा में तो नि०भा० में ५२ मात्रावाली गाहू गाथा में निबद्ध है। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पाठान्तर केवल त्रुटियों का ही सूचक नहीं है अपितु ग्रन्थकार या रचनाकार की योजना के कारण भी गाथाओं में पाठ-भेद हो सकता है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि यद्यपि किसी प्राचीन ग्रन्थ का पाठ-निर्धारण एक कठिन और बहुआयामी समस्या है फिर भी गाथाओं का छन्द की दृष्टि से अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है। छन्द-दृष्टि से अध्ययन करने पर समानान्तर गाथाओं के आलोक में गाथा-संशोधन के अलावा विषय-प्रतिपादन को भी सङ्गत बनाने में सहायता है।