Book Title: Agam 37 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Ek Adhyayan
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ १२० . दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन वाले मरुत, अनन्तानुबन्धी मानविषयक श्रेष्ठिपुत्री अत्यहङ्कारिणी भट्टा, अत्यधिक माया कषाय से युक्त श्रमणी पाण्डुरार्या तथा लोभी श्रमण आर्यमङ्ग के दृष्टान्त प्राप्त होते हैं। इस नियुक्ति में सङ्केतित दृष्टान्तों को इसप्रकार सूचीबद्ध कर सकते हैं :१. अधिकरण अर्थात् कलह सम्बन्धी दृष्टान्त ___I. द्विरुक्तक दृष्टान्त II. चम्पाकुमारनन्दी दृष्टान्त II. भृत्य द्रमक दृष्टान्त २. कषाय से सम्बन्धित दृष्टान्त 1. क्रोधकषायविषयक मरुत दृष्टान्त, I. मानकषाय विषयक अत्यहङ्कारिणी भट्टा दृष्टान्त, III. मायाकषाय विषयक पाण्डुरार्या दृष्टान्त, IV. लोभकषाय विषयक आर्यमङ्गु दृष्टान्त। नियुक्ति साहित्य में कथाओं को, उनके प्रमुख पात्रों के नाम-निर्देश के साथ एक, दो या कभी-कभी तीन गाथाओं में कथा के मुख्य बिन्दुओं के कथन द्वारा, इङ्गित किया गया है। कथा का पूर्ण स्वरूप परवर्ती साहित्य से ही ज्ञात हो पाता है, वह भी मुख्यत: चूर्णि साहित्य से। निशीथभाष्यचूर्णि' और दशा तस्कन्यचूर्णि' में उपर्युक्त कथायें दिये गये क्रम से उपलब्ध हैं। नि०भा०चू० में ये कथायें विस्तृत रूप में वर्णित हैं जबकि द०० में संक्षिप्त रूप में वर्णित हैं। इन दोनों चूर्णियों के अतिरिक्त यथाप्रसङ्ग बृहत्कल्पभाष्य' और आवश्यकचूर्णि' में भी ये कथायें प्राप्त होती हैं। इन चूर्णियों में प्राप्त विवरणों के आधार पर ही इन कथाओं का स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है१. अधिकरण सम्बन्धी द्विरुक्तक दृष्टान्त एगबइल्ला भंडी पासह तुम्मे उज्ज्ञ खलहाणे । हरणे झामणजत्ता, भाणगमल्लेण घोसणया ।।९१।। अप्पिणह तं बइल्लं दुरुतग्ग! तस्स कुंभयारस्स। मा भे डहीहि गामं अन्नाणि वि सत्त वासाणि ।।१२।। - दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति गाथा' एक्को कुंभकारो भंडिं कोलालभंडस्स भरेऊणदुरुत्तयं नाम पच्चंतगामंगतो। तेहिं दुरुत्तइच्चेहिं गोहेहिं तस्स एगंबइल्लं हरिउकामेहिं वुच्चति पेच्छह इमं अच्छेरं,

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232