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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
निक्षेप सिद्धान्त के भेद-प्रभेदों से नियुक्ति की व्याख्या में अत्यधिक सहायता मिलती है। एक-एक शब्द का निक्षेप ३०-३० गाथाओं तक में हुआ है। जो गाथा, निक्षेप सिद्धान्त के भेद-प्रभेदों के ज्ञान के अभाव में अत्यन्त दुरुह प्रतीत होती है वही भेद-प्रभेदों के आलोक में अपेक्षाकृत सरल प्रतीत होने लगती है।
वर्तमान में उपलब्ध निर्यक्तियों में निक्षिप्त शब्दों का सरसरी तौर पर निक्षेप के भेद-प्रभेदों की दृष्टि से सर्वेक्षण करने से ज्ञात होता है कि यदि उक्त दृष्टि से नियुक्ति-सामग्री का वर्गीकृत कर अध्ययन किया जाय तो नियुक्ति की व्याख्या में बहुत सहायता मिलेगी और नियुक्ति ही नहीं बल्कि नियुक्ति-आधारित भाष्य और चूर्णि की व्याख्या का मार्ग भी सुगम हो जायगा। दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति-सरंचना -- अन्य नियुक्तियों की ही भाँति दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति में भी निक्षेप, एकार्थ, निरुक्त और दृष्टान्त कथायें इसके घटक के रूप में विद्यमान हैं।
इस नियुक्ति में आशातना, गणिसम्पदा, शरीरसम्पदा, सङ्ग्रहपरिज्ञा, भिक्षु, स्थापना, मोह, जाति और बन्ध शब्दों के निक्षेप किये गये हैं। इसीप्रकार ज्ञात, पर्युषणा
और मोह शब्दों के एकार्थक इसमें प्राप्त होते हैं। निरुक्त की दृष्टि से वह स्थल उद्धृत किया जा सकता है जहाँ श्रावक ही उपासक है, श्रमण नहीं, इस तथ्य का निरूपण करते हुए कहा गया है- जिसके द्वारा सम्पूर्ण रूप से कार्य किया जाता है, वही कर्ता कहा जाता है।
जहाँ तक दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति में सङ्केतित दृष्टान्त कथाओं का प्रश्न है इसमें क्षमापना में कुम्भकार, उदायन चण्डप्रद्योत और चेट द्रमक का दृष्टान्त, चारों कषायों में क्रोध में मरुक, मान में अत्यहङ्कारिणी भट्टा, माया में साध्वी पाण्डुरार्या और लोभ में आर्यमङ्ग का दृष्टान्त निर्दिष्ट है। इस सम्बन्ध में विस्तार से विवेचन पुस्तक में यथास्थान आया हुआ है। दशाश्वतस्कन्यनियुक्ति-प्रतिपाद्य ___ दशाश्रुतस्कन्धनिर्यक्ति में आदि मङ्गलाचरण के रूप में सम्पूर्ण श्रुतों के ज्ञाता, ‘दशाश्रुत, कल्प और व्यवहार इन छेदसूत्रों के कर्ता प्राचीनगोत्रीय भद्रबाहु की वन्दना की गई है। विषय-निरुपण का प्रारम्भ दशा के निक्षेप से किया गया है। द्रव्य-निक्षेप की दृष्टि से दशा वस्तु की अवस्था है तो भाव-निक्षेप की दृष्टि से जीवन की अवस्था। जीवन अवस्था या आयु-विपाक के सन्दर्भ में सौ वर्ष की आयु को दस-दस वर्ष की दस दशाओं-अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया है। ये दस अवस्थायें हैं- बाला (एक से दस वर्ष), मन्दा (ग्यारह से बीस वर्ष), क्रीड़ा (२१-३० वर्ष), बला (३१-४०