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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
में गाथा के रूप में जाना जाता है। दोनों - गाथा सामान्य और आर्या में कुल मिलाकर ५७ मात्रायें होती हैं। गाथा में चरणों में मात्रायें क्रमश: इसप्रकार हैं- १२, १८, १२ और १५। अर्थात् पूर्वाद्ध के दोनों चरणों में मात्राओं का योग ३० और उत्तरार्द्ध के दोनों चरणों का योग २७ है।
'आर्या' और 'गाथा सामान्य' में अन्तर यह है कि आर्या में अनिवार्य रूप से ५७ मात्रायें ही होती हैं, इसमें कोई अपवाद नहीं होता, जबकि गाथा में ५७ से अधिक-कम मात्रा भी हो सकती है, जैसे ५४ मात्राओं की गाहू, ६० मात्राओं की उद्गाथा और ६२ मात्राओं की गाहिनी भी पायी जाती है। मात्रावृत्तों की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके चरणों में लघु या गुरु वर्ण का क्रम और उनकी संख्या नियत नहीं है। प्रत्येक गाथा में गुरु और लघु की संख्या न्यूनाधिक होने के कारण ‘गाथा सामान्य के बहुत से उपभेद हो जाते हैं।
द०नि० में 'गाथा सामान्य के प्रयोग का बाहुल्य है। कुछ गाथायें गाहू, उद्गाथा और गाहिनी में भी निबद्ध हैं। सामान्य लक्षण वाली गाथाओं (५७ मात्रा) में बुद्धि, लज्जा, विद्या, क्षमा, देही, गौरी, धात्री, चूर्णा, छाया, कान्ति और महामाया का प्रयोग हुआ है।
गाथा सामान्य के उपभेदों की दृष्टि से अलग-अलग गाथावृत्तों में निबद्ध श्लोकों की संख्या इसप्रकार है- बुद्धि-१, लज्जा-४, विद्या-११, क्षमा-९, देही-२८, गौरी-२२, धात्री-२३, चूर्णा-१५, छाया-८, कान्ति-३, महामाया-३, उद्गाथा-९ और अन्य-४।
यह बताना आवश्यक है कि सभी गाथाओं में छन्द लक्षण घटित नहीं होते हैं। दूसरे शब्दों में, सभी गाथायें छन्द की दृष्टि से शुद्ध हैं या निदोष हैं, ऐसी बात नहीं है कुछ गाथायें अशुद्ध भी हैं। __नियुक्ति गाथाओं में गाथा-लक्षण घटित करने के क्रम में जो तथ्य सामने आते हैं वे इसप्रकार हैं
इस नियुक्ति में १४१ में से ४७ गाथायें गाथा लक्षण की दृष्टि से निर्दोष हैं अर्थात् इन ४७ गाथाओं में गाथा लक्षण यथावत् घटित हो जाते है। इनका विवरण निम्न सारिणी में दिया गया है
क्रम सं. गाथा सं.. १. १
गुरु १०
लघु १०
मात्रा ५७
गाथा नाम धात्री
प्र.