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द्वितीय अध्याय नियुक्ति-संरचना और दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति
जैन आगम साहित्य के एक वर्गीकरण के रूप में छेद सूत्रों की संख्या, नामकरण, सामान्य विषय-वस्तु, दशाश्रुतस्कन्ध की विषय-वस्तु, प्रकाशित संस्करण तथा अन्य ज्ञातव्य तथ्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने के पश्चात् द०नि० के प्रतिपाद्य के विषय में चर्चा करने से पूर्व नियुक्ति साहित्य की संरचना और उसके प्रमुख अवयव निक्षेप सिद्धान्त का विवेचन अप्रासङ्गिक नहीं होगा।
आगमों की व्याख्या नियुक्ति के स्वरूप को प्रकाशित करने वाली दश० नियुक्ति की निम्न गाथायें
निक्खेवेगट्ठ निरुत्तविही पवित्ती य केण वा कस्स । तहार भेयलक्खण तयरिह परिसा य सुत्तथो ।।५।।
एवं भिक्खुस्स य निक्खेवो निरुत्तएगडिआणि लिंगाणि ।
अगुणाहिओ न भिक्खू अवयवा पंच दाराई ।।३२२।। नियुक्ति साहित्य की संरचना पर या नियुक्ति के अवयवों या घटकों पर कुछ सीमा तक प्रकाश डालती हैं। लेकिन नियुक्ति साहित्य की संरचना को समग्र रूप से अभिव्यक्त करने वाला कोई प्राचीन उल्लेख अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। प्रो० कापडिया ने भी इसी तथ्य को इङ्गित करते हुए कहा है- "In order that its nature may completely realised, it is necessary to tap another source wherein there is a specific mention of atleast its constituents." for at हम उक्त गाथाओं के आलोक में कह सकते हैं कि निक्षेप, एकार्थ एवं निरुक्त नियुक्ति साहित्य के घटक के रूप में प्राचीन साहित्य में भी वर्णित हैं। साथ ही दृष्टान्त कथाओं का सङ्केत भी पर्याप्त मात्रा में नियुक्तियों में दृष्टिगोचर होता है।
नियुक्ति साहित्य की संरचना में चारों घटकों- निक्षेप, एकार्थ, निरुक्त और दृष्टान्त की महत्ता एवं स्वरूप के सम्बन्ध में आधुनिक भारतीय एवं विदेशी विद्वानों ने भी मन्तव्य प्रस्तुत किया है।
निर्यक्ति साहित्य के प्रमुख घटक के रूप में निक्षेप की महत्ता बताते हुए एल०एल्सडोर्फ का अभिमत है