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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन के व्यक्तित्व के प्रभाव तथा शारीरिक प्रभाव का अत्यन्त उपयोगी वर्णन किया गया है। ____ आचार्य ने दशाश्रुतस्कन्ध के प्रतिपाद्य पर ज्ञेयाचार, उपादेयाचार और हेयाचार की दृष्टि से भी विचार किया है- असमाधिस्थान, शबलदोष, आशातना, मोहनीयस्थान और आयतिस्थान में साधक के हेयाचार का प्रतिपादन है। गणि सम्पदा में अगीतार्थ अनगार के ज्ञेयाचार का और गीतार्थ अनगार के लिए उपादेयाचार का कथन है। चित्तसमाधि स्थान में उपादेयाचार का कथन है। उपासक प्रतिमा में अनगार के लिए ज्ञेयाचार और सागार श्रमणोपासक के लिए उपादेयाचार का कथन है।
भिक्षु प्रतिमा में अनगार के लिए उपादेयाचार और सागार के लिए ज्ञेयाचार का कथन है। अष्टम दशा पर्युषणाकल्प में अनगार के लिए ज्ञेयाचार, कुछ हेयाचार अनागार
और सागार दोनों के लिए उपयोगी है। दशाओं का पौर्वापर्य एवं परस्पर सामञ्जस्य
दशाश्रुतस्कन्ध में प्रतिपादित अध्ययनों के पौर्वापर्य का औचित्य सिद्ध करने से पूर्व इस तथ्य पर विचार करना आवश्यक है कि आचार्य ने समाधिस्थान का वर्णन न कर सर्वप्रथम असमाधि स्थानों का ही वर्णन क्यों किया? इसके उत्तर में आचार्य आत्माराम के शब्दों में यह कहा जा सकता है कि असमाधि यहाँ नञ् तत्पुरुष समासान्त पद है। यदि नञ् समास न किया जाये तो यही बीस समाधि स्थान बन जाते हैं अर्थात अकार को हटा देने से यही बीस भाव समाधि के स्थान हैं। इसप्रकार इसी अध्ययन से जिज्ञासु समाधि और असमाधि दोनों के स्वरूप को भलीभाँति जान सकते हैं। ___ अध्ययनों के पौर्वापर्य और परस्पर सामञ्जस्य की दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि असमाधि स्थानों के आसेवन से शबलदोष की प्राप्ति होती है। अत: पहली दशा से सम्बन्ध रखते हुए सूत्रकार दूसरी दशा में शबलदोष का वर्णन करते हैं।२८
जिसप्रकार दुष्कर्मों से चारित्र शबलदोषयुक्त होता है, ठीक उसीतरह रत्नत्रय के आराधक आचार्य या गुरु की आशातना करने से भी चारित्र शबल दोषयुक्त होता है। अत: पहली और दूसरी दशा से सम्बन्ध रखते हुए तीसरी दशा में तैंतीस आशातनाओं का वर्णन है। आशतनाओं का परिहार करने से समाधि-मार्ग निष्कण्टक हो जाता है।
प्रारम्भिक तीनों दशाओं में असमाधि स्थानों, शबलदोषों और आशातनाओं का प्रतिपादन किया गया है। उनका परित्याग करने से श्रमण गणि पद के योग्य हो जाता है। अत: उक्त तीनों दशाओं के क्रम में चतुर्थ दशा में गणिसम्पदा का वर्णन है। गणि-सम्पदा से परिपूर्ण गणि समाधि-सम्पन्न हो जाता है किन्तु जब तक उसको चित्त