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भूमिका
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२. आचार्य भद्रगुप्त को उत्तर भारत की अचेल परम्परा का पूर्वपुरुष दो निम्न आधारों पर माना जा सकता है। प्रथम, कल्पसूत्र की पट्टावली के अनुसार आर्यभद्रगुप्त आर्यशिवभूति के शिष्य हैं। इसी शिवभूति का आर्यकृष्ण से मुनि की उपधि (वस्त्र-पात्र) के प्रश्न पर विवाद हुआ था और इन्होंने अचेलता का पक्ष लिया था। कल्पसूत्र स्थविरावली में आर्यकृष्ण और आर्यभद्र दोनों को आर्य शिवभूति का शिष्य कहा गया हैं। आर्यभद्र को आर्यवज्र एवं आर्यरक्षित के शिक्षक के रूप में में श्वेताम्बरों और शिवभूति के शिष्य के रूप में यापनीय परम्परा में मान्यता मिली है। आर्यशिवभूति के शिष्य होने के कारण आर्यभद्र भी अचेलता के पक्षधर होगें और इसलिए उनकी कृतियाँ यापनीय परम्परा में मान्य रहीं होगी।
३. विदिशा से प्राप्त एक अभिलेख में भद्रान्वय एवं आर्यकुल का उल्लेख हैशमदमवान चीकरत् (II) आचार्य - भद्रावन्यभूषणस्य शिष्यो ह्यसावार्यकुलोद्गतस्य (1) आचार्य - गोश
(जै०शि०सं०, २, पृ. ५७) सम्भावना यही है कि भद्रान्वय एवं आर्यकुल का विकास इन्हीं आर्यभद्र से हुआ हो। यहाँ के अन्य अभिलेखों में मुनि का 'पाणितलभोजी' यह विशेषण इङ्गित करता है कि केन्द्र अचेल धारा का था। पूर्वज आचार्य भद्र की कृति होने के कारण नियुक्तियाँ यापनीयों में भी मान्य रही होगी। परवर्ती एवं विकसित ओघनियुक्ति या पिण्डनियुक्ति में भी दो चार प्रसङ्गों के अतिरिक्त कहीं भी वस्त्र-पात्र का विशेष उल्लेख नहीं मिलता है। यह इस तथ्य का भी सूचक है कि नियुक्तियों के काल तक वस्त्र-पात्र आदि का समर्थन उस रूप में नहीं किया जाता था, जिस रूप में परवर्ती श्वेताम्बर सम्प्रदाय में हुआ। वस्त्र-पात्र के सम्बन्ध में नियुक्ति की मान्यता भगवतीआराधना एवं मूलाचार से अधिक दूर नहीं है। आचाराङ्गनियुक्ति में आचाराङ्ग 'वस्त्रैषणा' अध्ययन की नियुक्ति केवल एक गाथा में है और 'पात्रैषणा' पर कोई नियुक्ति गाथा ही नहीं है। अत: वस्त्र-पात्र के सम्बन्ध में नियुक्तियों के कर्ता आर्यभद्र की स्थिति भी मथुरा के साधु-साध्वियों के अङ्कन से अधिक भिन्न नहीं है। अत: नियुक्तिकार के रूप में आर्य भद्रगुप्त को स्वीकार करने में नियुक्तियों में वन-पात्र के उल्लेख अधिक बाधक नहीं हैं।
४. आर्यभद्र के निर्यापक (समाधिमरण कराने वाले) आरक्षित माने जाते हैं।. नियुक्ति और चूर्णि दोनों के अनुसार आर्यरक्षित अचेलता के पक्षधर थे। उन्होंने प्रारम्भ में अचेल दीक्षा ग्रहण करना नहीं चाहने वाले अपने पिता को योजनापूर्वक