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दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति : एक अध्ययन
अचेल बना दिया था। चूर्णि में प्राप्त कटिपट्टक की बात श्वेताम्बर पक्ष की पुष्टि हेतु सम्मिलित की गयी प्रतीत होती है।
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भद्रगुप्त को नियुक्ति का कर्त्ता मानने के सम्बन्ध में निम्न कठिनाइयाँ हैं
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१. आवश्यकनिर्युक्ति एवं आवश्यकचूर्णि के उल्लेखों के अनुसार आर्यरक्षित भद्रगुप्त के निर्यापक माने गये। आवश्यकनिर्युक्ति आर्यरक्षित की विस्तार से चर्चा करती है और आदरपूर्वक स्मरण करती है । भद्रगुप्त आर्यरक्षित से दीक्षा में ज्येष्ठ हैं, ऐसी स्थिति में उनके द्वारा रचित नियुक्तियों में आर्यरक्षित का उल्लेख इतने विस्तार से एवं इतने आदरपूर्वक नहीं आना चाहिए । यद्यपि परवर्ती उल्लेख एकमत से यह मानते हैं कि आर्यभद्रगुप्त की निर्यापना आर्यरक्षित ने करवायी, किन्तु मूल गाथा को देखने पर इस मान्यता के बारे में किसी को सन्देह भी हो सकता है, मूल गाथा निम्नानुसार है
निज्जवण भद्दगुत्ते वीसुं पढणं च तस्स पुव्वगयं ।
पव्वाविओ य भाया रक्खिअखमणेहिं जणओ अ ।। - आवश्यकनिर्युक्ति, ७७६ ।
यहाँ “निज्जवण भद्दगुत्ते” में यदि “ भद्दगुत्ते" को आर्ष प्रयोग मानकर कोई प्रथमाविभक्ति में समझे तो इस गाथा के प्रथम दो चरणों का अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है — भद्रगुप्त ने आर्यरक्षित की निर्यापना की और उनसे समस्त पूर्वगत साहित्य का अध्ययन किया ।
गाथा के उपरोक्त अर्थ को स्वीकार करने पर नियुक्तियों में आर्यरक्षित बहुमान पूर्वक उल्लेख अप्रासङ्गिक नहीं है, क्योंकि जिस व्यक्ति ने आर्यरक्षित की निर्यापना करवायी हो और जिनसे पूर्वों का अध्ययन किया वह उनका अपनी कृति में सम्मानपूर्वक उल्लेख करेगा ही। किन्तु गाथा का इस दृष्टि से किया गया अर्थ चूर्णि में प्राप्त कथानकों के साथ एवं नियुक्ति गाथाओं के पूर्वापर प्रसङ्ग को देखते हुए, किसी भी प्रकार सङ्गत नहीं माना जा सकता है। चूर्णि में तो यही कहा गया है कि आर्यरक्षित ने भद्रगुप्त की निर्यापना करवायी और आर्यवज्र से पूर्वसाहित्य का अध्ययन किया । यहाँ दूसरे चरण में प्रयुक्त " तस्स" शब्द का सम्बन्ध आर्यवज्र से है, जिनका उल्लेख पूर्व गाथाओं में किया गया है। साथ ही यहाँ 'भद्दगुत्ते' में सप्तमी का प्रयोग है, जो एक कार्य को समाप्त कर दूसरा कार्य प्रारम्भ करने की स्थिति में किया जाता है। यहाँ सम्पूर्ण गाथा का अर्थ इस प्रकार होगा - आर्यरक्षित ने भद्रगुप्त की निर्यापना (समाधिमरण) करवाने के पश्चात् ( आर्यवज्र से) समस्त पूर्वो का अध्ययन किया है और अपने भाई और पिता को दीक्षित किया। यदि आर्यरक्षित भद्रगुप्त के निर्यापक हैं और वे ही नियुक्तियों के कर्त्ता भी हैं, तो फिर नियुक्तियों में