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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
छेदसूत्र
छेदसूत्रों के अन्तर्गत वर्तमान में- १. आयारदसा (दशाश्रुतस्कन्ध), २. कप्प (कल्प), ३. ववहार (व्यवहार), ४. निसीह (निशीथ), ५. महानिसीह (महानिशीथ), ६. और जीयकप्प (जीतकल्प) - ये छ: गन्थ माने जाते हैं। प्रकीर्णक
इसके अन्तर्गत निम्न दस ग्रन्थ माने जाते हैं
१. चउसरण (चतुःशरण), २. आउरपच्चक्खाण (आतुरप्रत्याख्यान), ३. भत्तपरित्रा (भक्तपरिज्ञा), ४. संथारय (संस्तारक), ५. तंडुलवेयालिय (तन्दुलवैचारिक), ६. चंदवेज्झय (चन्द्रवेध्यक), ७. देविंदत्थय (देवेन्द्रस्तव), ८. गणिविज्जा (गणिविद्या), ९. महापच्चक्खाण (महाप्रत्याख्यान) १०. और वीरत्थय (वीरस्तव)। चूलिकासूत्र
चूलिकासूत्र के अन्तर्गत नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार-ये दो ग्रन्थ माने जाते हैं।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय की स्थानकवासी एवं तेरापन्थी परम्परा ४५ में से दस प्रकीर्णकों के अतिरिक्त जीतकल्प, महानिशीथ और पिण्डनियुक्ति को छोड़कर केवल ३२ ग्रन्थों को मानती है। कुछ लोग आगमों की संख्या ८४ मानते हैं। उनकी दृष्टि में प्रकीर्णकों की संख्या दस के स्थान पर ३० है। वे ४५ ग्रन्थों के साथ नियुक्तियों तथा यतिजीतकल्प, श्राद्धजीतकल्प, पाक्षिकसूत्र, क्षमापनासूत्र, वन्दित्तुसूत्र, तिथिप्रकरण, कवचप्रकरण, संशक्तनियुक्ति और विशेषावश्यकभाष्य को भी आगमों में सम्मिलित करते हैं।
आगम-प्रणयन
परम्परागत रूप से आगम जिनवाणी हैं और वर्तमान आगम महावीर के उपदेश हैं। कहा जाता है कि महावीर ने जो उपदेश दिया उसे गणधरों ने सूत्रबद्ध किया है। इसीलिए अर्थोपदेशक या अर्थरूप शास्त्र के कर्ता महावीर माने जाते हैं और शब्दरूप शास्त्र के कर्ता गणधर हैं। परन्तु वास्तव में यह तथ्य केवल अङ्गों के विषय में ही प्रासङ्गिक है। अङ्गों के अतिरिक्त आगम की क्रमशः हुई संख्या वृद्धि के सम्बन्ध में पद्मभूषण पं.दलसुख भाई मालवणियारे का अभिमत उल्लेखनीय है। उनके अनुसार "गणधरों के अलावा अन्य प्रत्येकबुद्ध महापुरुषों ने जो उपदेश दिया था उसे भी प्रत्येकबुद्ध के केवली होने से आगम में सन्निविष्ट करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती थी। इसी प्रकार गणिपिटक के ही आधार पर मन्दबुद्धि शिष्यों के हितार्थ श्रुतकेवली आचार्यों ने जो ग्रन्थ बनाये थे उनका समावेश भी आगम के साथ उनका अविरोध