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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
२. दूसरे, इन दस नियुक्तियों में कई ऐसे तथ्य हैं जो इन्हें वाराहमिहिर के भाई एवं नैमित्तिक भद्रबाहु (विक्रम संवत् ५६६) की रचना मानने में बाधक हैं। आवश्यकनियुक्ति (सामायिक अध्ययन) में निह्नवों के उत्पत्ति स्थल एवं उत्पत्तिकाल सम्बन्धी गाथा एवं उत्तराध्ययननिर्यक्ति (तीसरे अध्ययन की नियुक्ति) में शिवभूति का उल्लेख करने वाली गाथायें प्रक्षिप्त हैं। इसका प्रमाण यह है कि उत्तराध्ययनचूर्णि, इस नियुक्ति की प्रामाणिक व्याख्या- में १६७ गाथा तक की ही चूर्णि दी गयी हैं। निह्नवों के सन्दर्भ में अन्तिम चूर्णि 'जेठा सुदंसण' नामक १६७ वी गाथा की है। उसके आगे निह्नवों के वक्तव्य को सामायिकनियुक्ति (आवश्यकनियुक्ति) के आधार पर जान लेना चाहिए' ऐसा निर्देश है।६५ ज्ञातव्य है कि सामायिकनियुक्ति में बोटिकों का कोई उल्लेख नहीं है। उस नियुक्ति में जो बोटिक मत के उत्पत्तिकाल एवं स्थल का उल्लेख है, वह प्रक्षिप्त है एवं वे भाष्य गाथाएँ हैं- यह हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। उत्तराध्ययनचूर्णि में निह्नवों की कालसूचक गाथाओं को नियुक्तिगाथाएँ न कहकर आख्यानक सङ्ग्रहणी की गाथा कहा जाना भी,६६-- आवश्यकनियुक्ति में निह्नवों के उत्पत्तिनगर एवं उत्पत्तिकाल सूचक गाथाएँ मूलत: नियुक्ति की गाथाएँ नहीं हैं, अपितु सङ्ग्रहणी अथवा भाष्य से उसमें प्रक्षिप्त की गयी हैं- मेरी इस मान्यता की पुष्टि करता है। क्योंकि इन गाथाओं में उनके उत्पत्ति नगरों एवं उत्पत्ति-समय दोनों की संख्या आठ-आठ है। इस प्रकार इनमें बोटिकों के उत्पत्तिनगर
और समय का भी उल्लेख है। आश्चर्य यह है कि ये गाथाएँ सप्त निह्रवों की चर्चा के बाद दी गईं- जबकि बोटिकों की उत्पत्ति का उल्लेख तो इसके भी बाद में है और मात्र एक गाथा में है। अत: ये गाथाएँ किसी भी स्थिति में नियुक्ति की गाथायें नहीं मानी जा सकती हैं।
यदि बोटिक निह्नव सम्बन्धी गाथाओं को नियुक्ति गाथाएँ मान भी लें तो भी नियुक्ति के रचनाकाल की अपर सीमा को वीरनिर्वाण संवत् ६१० अर्थात् विक्रम की तीसरी शती के पूर्वार्ध से आगे नहीं ले जाया जा सकता है क्योंकि इसके बाद का कोई उल्लेख हमें नियुक्तियों में नहीं मिला। यदि नियुक्तियाँ नैमित्तिक भद्रबाहु (विक्रम की छठीं सदी उत्तरार्द्ध) की रचनाएँ होती तो उनमें विक्रम की तीसरी सदी से लेकर छठीं सदी के बीच के किसी न किसी आचार्य एवं घटना का उल्लेख भी, चाहे सङ्केत रूप में ही क्यों न हो, अवश्य होता। अन्य कुछ भी नहीं तो माथुरी एवं वलभी वाचना के उल्लेख अवश्य होते, क्योंकि नैमित्तिक भद्रबाहु उनके बाद ही हुए हैं। वे वलभी वाचना के आयोजक देवर्द्धिगणि के तो कनिष्ठ समकालिक हैं, अत: यदि वे नियुक्तिकर्ता होते तो वलभी वाचना का उल्लेख नियुक्तियों में अवश्य करते।