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भूमिका
भद्रबाहु, वाराहमिहिर के भाई होने से उनके समकालीन हैं अत: इस स्थिति में नियुक्तियों का रचनाकाल भी विक्रम की छठी शताब्दी का उत्तरार्द्ध स्वत: सिद्ध है। परन्तु नियुक्तियों को विक्रम की छठीं सदी में उत्पन्न हुए नैमित्तिक भद्रबाहु की कृति मानने पर हमारे सामने कुछ प्रश्न उपस्थित होते हैं
१. नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में नियुक्तियों के अस्तित्व का स्पष्ट उल्लेख हैसंखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जा संगहणीओ (नन्दीसूत्र, सूत्र सं० ४६) स सुत्ते सत्ये सनिज्जुतिए ससंगहणिए (पाक्षिकसूत्र, पृ. ८०) निश्चित रूप से नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र ये दोनों ग्रन्थ विक्रम की छठीं सदी के पूर्व निर्मित हो चुके थे। अत: इन ग्रन्थों में छठीं सदी के उत्तरार्द्ध में रचित नियुक्तियों का उल्लेख कैसे सम्भव है? इस सम्बन्ध में मुनिश्री पुण्यविजय जी का तर्क है कि नन्दीसूत्र में नियुक्तियों का उल्लेख गोविन्दनियुक्ति आदि को ध्यान में रखकर किया गया होगा।६१ यह सत्य है कि गोविन्दनियुक्ति एक प्राचीन रचना है क्योंकि निशीथचूर्णि में गोविन्दनिर्यक्ति के उल्लेख के साथ-साथ गोविन्दनियुक्ति की उत्पत्ति की कथा भी दी गई है।६२ गोविन्दनियुक्ति के रचयिता, नन्दीसूत्र में अनुयोगद्वार के ज्ञाता के रूप में उल्लखित, आर्यगोविन्द ही होने चाहिए। स्थविरावली के अनुसार ये आर्य स्कन्दिल की चौथी पीढ़ी में हैं।६३ अत: इनका काल विक्रम की पाँचवीं सदी निश्चित होता है। इसी आधार पर मुनिश्री पुण्यविजय जी का अभिमत है कि नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र में नियुक्ति का उल्लेख आर्यगोविन्द की नियुक्ति को लक्ष्य में रखकर किया गया है और दसों नियुक्तियों के रचयिता नैमित्तिक भद्रबाहु हैं।
मुनिश्री पुण्यविजयजी की इस मान्यता को पूर्णत: स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि उपरोक्त दस नियुक्तियों की रचना से पूर्व भले ही आर्यगोविन्द की नियुक्ति अस्तित्व में हो, किन्तु नन्दीसूत्र एवं पाक्षिकसूत्र का नियुक्ति सम्बन्धी उल्लेख आचाराङ्ग आदि आगम ग्रन्थों की नियुक्ति के सम्बन्ध में ही है। गोविन्दनियुक्ति किसी आगम ग्रन्थ पर नियुक्ति नहीं है, निशीथचूर्णि आदि में प्राप्त सभी उल्लेख इसे दर्शनप्रभावक ग्रन्थ और एकेन्द्रिय में जीव की सिद्धि करने वाला ग्रन्थ बताते हैं।६४ अत: उनकी यह मान्यता कि नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में गोविन्दनियुक्ति के सन्दर्भ में उल्लेख है, समुचित नहीं है। अत: यह मानना होगा कि नन्दी एवं पाक्षिकसूत्र की रचना के पूर्व अर्थात् पाँचवीं शती के पूर्व आगमों पर नियुक्ति लिखी जा चुकी थी।