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भूमिका
आर्यद्रोण, मलधारी हेमचन्द्र, मलयगिरि, शान्तिसूरि तथा क्षेमकीर्तिसरि के नाम प्रमुख हैं किन्तु ये सभी आचार्य विक्रम की दसवीं सदी के पश्चात् हुए हैं। अत: इनका कथन बहुत अधिक प्रामाणिक नहीं हो सकता है। उन्होंने मात्र अनुश्रुतियों के आधार पर लिखा है। दुर्भाग्य से ८वीं-९वीं सदी के पश्चात् चतुर्दश पूर्वधर श्रुतकेवली भद्रबाहु और वाराहमिहिर के भाई नैमित्तिक भद्रबाहु के कथानक, नामसाम्य के कारण एक-दूसरे से घुल-मिल गये और दूसरे भद्रबाहु की रचनायें भी प्रथम के नाम से चढ़ा दी गईं। यही कारण रहा कि नैमित्तिक भद्रबाहु को भी प्राचीनगोत्रीय श्रुतकेवली चतुर्दश पूर्वधर के साथ जोड़ दिया गया है और दोनों के जीवन की घटनाओं के इस घाल-मेल से अनेक अनुश्रुतियाँ प्रचलित हो गईं। इन्हीं अनुश्रुतियों के परिणामस्वरूप नियुक्ति के कर्ता के रूप में चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु की अनुश्रुति प्रचलित हो गयी। यद्यपि मुनि श्री पुण्यविजय जी ने बृहत्कल्पसूत्र (नियुक्ति, लघुभाष्य-वृत्युपेतम्) के षष्ठ विभाग के आमुख में यह लिखा है कि नियुक्तिकार स्थविर आर्य भद्रबाहु हैं, इस मान्यता को पुष्ट करने वाला एक प्रमाण जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के विशेषावश्यकभाष्य की स्वोपज्ञ टीका में भी मिलता है।३३ यद्यपि उन्होंने वहाँ उस प्रमाण का सन्दर्भ सहित उल्लेख नहीं किया है। मैं इस सन्दर्भ को खोजने का प्रयत्न कर रहा हूँ। उसके मिल जाने पर भी हम केवल इतना ही कह सकेगें कि विक्रम की लगभग सातवीं शती से नियुक्तिकार प्राचीनगोत्रीय चतुदर्श पूर्वधर भद्रबाहु हैं, ऐसी अनुश्रुति प्रचलित हो गयी थी। ___ नियुक्तिकार, प्राचीनगोत्रीय चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु हैं अथवा नैमित्तिक (वाराहमिहिर के भाई) भद्रबाहु हैं, यह प्रश्न विवादास्पद है। जैसा कि हमने सङ्केत किया है नियुक्तियों को प्राचीनगोत्रीय चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु कृत मानने की परम्परा आर्यशीलाङ्क से या उसके पूर्व जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण से प्रारम्भ हुई है। किन्तु उनके इस उल्लेख में कितनी प्रामाणिकता है यह विचारणीय है, क्योंकि नियुक्तियों में ही ऐसे अनेक प्रमाण उपस्थित हैं, जिनसे नियुक्तिकार पूर्वधर भद्रबाहु हैं, इस मान्यता में बाधा उत्पन्न होती है। इस सम्बन्ध में मुनिश्री पुण्यविजयजी ने अत्यन्त परिश्रम द्वारा वे सब सन्दर्भ प्रस्तुत किये हैं, जो नियुक्तिकार पूर्वधर भद्रबाहु हैं, इस मान्यता के विरोध में जाते हैं। हम उनकी स्थापनाओं के हार्द को ही हिन्दी भाषा में रूपान्तरित कर निम्न पंक्तियों में प्रस्तुत कर रहे हैं
१. आवश्यकनियुक्ति (गाथा ७६४-७७६) में वज्रस्वामी के विद्यागुरु आयसिंहगिरि, आर्यवज्रस्वामी, तोषलिपुत्र, आर्यरक्षित, आर्य फल्गुमित्र, स्थविर भद्रगुप्त जैसे आचार्यों का स्पष्ट उल्लेख है।३४ ये सभी आचार्य चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु से परवर्ती हैं। तोषलिपुत्र के अतिरिक्त सभी कल्पसूत्र स्थविरावली में उल्लिखित हैं। यदि