Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 04
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
View full book text
________________
४८
गाथा
४६५०-४७९४
४६५०-४७३९
४६५०
४६५१-५४
४६५५-५८
४६५९-६२
४६६३-७२
१६७३-७६
'बृहत्कल्पसूत्र चतुर्थ विभागनो विषयानुक्रम |
विषय
आदिने उपकरणादि पाछा आपवामाटे समजाववाना प्रकारो तेम ज तेनी तपास वगेरे करवामादे राजकर्मचारीओने समजावताना प्रकारो, प्रस्तुत सूत्र लगतुं अपवादपद आदि
Jain Education International
अवग्रहप्रकृत सूत्र २५ - २९
२५ पहेलुं अवग्रह सूत्र
जे दिवसे श्रमणो वसति अने संस्तारकनो त्याग करे तेज दिवसे बीजा श्रमणो त्यां आवे ते छतां एक दिवस सुधी पूर्व श्रमणोनो अवग्रह कायम रहे छे अत्रग्रहप्रकृतनो पूर्वसूत्र साथै सम्बन्ध
- पहेला अवग्रहसूत्रनी व्याख्या शैक्षविषयक अवग्रहनी उत्पत्तिनो संभव, तेना कालप्रमाणविषयक बे अनादेशो अने सैद्धान्तिकनो आदेश
वास्तव्य अने वाताहत एटले आगन्तुक शैक्षना रूपज्ञ, शब्दज्ञ, उभयज्ञ आदि पांच पांच प्रकारो वास्तव्य अने वाताहत शिष्यनुं स्वरूप वर्णववा माटे द्वारगाथाओ
२ 'पुणो दाई' अने ३ 'यावज्जीवपराजित' द्वार परिचित क्षेत्रिक श्रमणोना गया पछी प्रव्रज्यामादे भविष्य उपर आधार राखनार शैक्षने आगन्तुक श्रमणो द्वारा प्रतिबोध
४६७७-७८ पृ० ४ 'शापिते कथं कल्पो वास्तव्ये वाताहतेऽपि च' द्वार
१ अव्याघातद्वार
रूपज्ञ, शब्दज्ञ, उभयज्ञ अने यशःकीर्तिज्ञ वास्तव्य अने वाताहृत शैक्षविषयक चार नवको-नवभंगी अने तद्विषयक अवग्रहनुं स्वरूप
For Private & Personal Use Only
पत्र
१२४८-५३
१२५४-८७
१२५४-७४
१२५४
१२५४
१२५४-५५
१२५५-५६
१२५६-५७
१२५७-५९
१२५९-६०
१२६०-६१
www.jainelibrary.org