________________ " " amv - " अठारह-उन्नीस-बीसवाँ बोल-ब्रह्मचर्य, ज्ञाताध्ययन, असमाधिस्थान इक्कीस-वाईसवाँ बोल—शबलदोष, परीपह ते ईम-चौवीसवाँ बोल----सूत्रकृतांग-अध्ययन, देवगण पच्चीस-छब्बीसवाँ बोल-भावना, दशाथ तस्कन्धादि के उद्देश मसाईम-अठाईमाँ बोल–अनगारगण, प्राचारप्रकल्प के अध्ययन उनतीस-तोमवाँ बोल-पापश्र तप्रसंग, मोहनीयस्थान इकतीस-बत्तीस-तीसवाँ बोल- सिद्धगण, योगसंग्रह, ग्राणानना पूर्वोक्त ततीस स्थानों के प्राचरण का फल 0 " " m 2015 Nx बत्तीसवाँ अध्ययनः प्रमावस्थान अध्ययन-सार सर्वदुःख मुक्ति के उपाय कथन की प्रतिज्ञा दु:खमुक्ति तथा मुखप्राप्ति का उपाय ज्ञानादिप्राप्तिरूप समाधि के लिए कर्तव्य दुख की परम्परागत उत्पत्ति राग-दोष के उन्मूलन का प्रथम उपाय : अतिभोजनत्याग अब्रह्मचर्य पोषक वातों का त्याग: द्वितीय उपाय कामभोग : दुःखों के हेतु मनोज-अमनोज्ञ रूपों में राग-द्वेष से दूर रहे मनोज-अमनोज्ञ शब्दों के प्रति गग-द्वेषमुक्त रहने का निर्देश मनोज-अमनोज्ञ गन्ध्र के प्रति राग-द्वेषमुक्त रहने का निर्देश मनोज्ञ-अमनोज्ञ रस के प्रति राग-द्वेपमुक्त रहने का निर्देश मनोज-अमनोज्ञ स्पर्शों के प्रति राग-द्वेष मुक्त रहने का निर्देश मनोज-अमनोज्ञ भावों के प्रति राग-द्वेपमुक्त रहने का निर्देश गगी के लिए ही ये दुख के कारण, बीतगगी के लिए नहीं राग-द्वेषादि विकारों के प्रवेशम्रोता से मावधान रहें अपने ही मंकल्प-विकल्प : दोषों के हेतु वीतरागी की मर्व कर्मों और दुःखों मे मुक्ति का क्रम उपसंहार तेतीसवाँ अध्ययन : कर्मप्रकृति अध्ययन-सार कर्मबन्ध और कर्मों के नाम पाठकों की उत्तरप्रकृतियाँ कर्मों के प्रदेशाग्र, क्षेत्र, काल और भाव उपसंहार ७.०७.००Gटम / 108 | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org