________________ 140] [उत्तराध्ययनसूत्र प्रथम प्रश्नोत्तर : मिथिला में कोलाहल का कारण 6. अब्भुठ्ठियं रायरिसि पव्वज्जा-ठाणमुत्तमं / सक्को माहणरूवेण इमं वयणमब्बवी-।। [6] सर्वोत्कृष्ट प्रव्रज्यारूप स्थान (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि गुणों की स्थानभूत प्रव्रज्या) के लिए अभ्युत्थित हुए राजर्षि नमि को ब्राह्मण के रूप में आए हुए शक (देवेन्द्र) ने यह वचन कहा 7. 'किण्णु भो ! अज्ज मिहिलाए कोलाहलग-संकुला। ___ सुब्धन्ति दारुणा सद्दा पासाएसु गिहेसु य ?' [7] हे राजर्षि ! मिथिला नगरी में, महलों और घरों में कोलाहल (विलाप एवं क्रन्दन) से व्याप्त दारुण (हृदय-विदारक) शब्द क्यों सुने जा रहे हैं ? 8. एयमझें दिसामित्ता हेउकारण-चोइओ। तओ नमी रायरिसी देविन्दं इणमम्बवी-।। [8] (देवेन्द्र के) इस प्रश्न को सुन कर हेतु और कारण से सम्प्रेरित नमि राजर्षि ने देवेन्द्र से यह (वचन) कहा 9. 'मिहिलाए चेइए वच्छे सीयच्छाए मणोरमे। पत्त-पुप्फ-फलोवेए बहूणं बहुगुणे सया-॥ 10. वाएण हीरमाणमि चेइयंमि मणोरमे। दुहिया असरणा अत्ता एए कन्दन्ति भो ! खगा।' [6-10] मिथिला नगरी में एक उद्यान (चैत्य) था; (उस में) ठंडी छाया वाला, मनोरम, पत्तों, फूलों और फलों से युक्त बहुत-से पक्षियों का सदैव अत्यन्त उपकारी (बहुगुणसम्पन्न) एक वृक्ष था। प्रचण्ड आँधी से (आज) उस मनोरम वृक्ष के हट जाने पर, हे ब्राह्मण ! ये दुःखित, अशरण और पीड़ित पक्षी प्राक्रन्दन कर रहे हैं। विवेचन-सक्को माहणरूवेण : आशय-इन्द्र ब्राह्मण के वेष में क्यों आया ? इसका कारण बहवत्तिकार बताते हैं कि राज्य करते हुए भी ऋषि के समान नमि राजर्षि राज्यऋद्धि छोड़ कर भागवती दीक्षा ग्रहण करने के लिए उद्यत थे। उस समय उनकी त्यागवृत्ति की परीक्षा करने के लिए स्वयं इन्द्र ब्राह्मण के वेष में दीक्षास्थल पर पाया और उनसे तत्सम्बन्धित कुछ प्रश्न पूछे / ' पासाएसु गिहेसु : प्रासाद और गृह में अन्तर–सात या इससे अधिक मंजिल वाला मकान प्रासाद या महल कहलाता है, जबकि साधारण मकान को गृह-घर कहते हैं / हेउकारण-चोइओ-साध्य के विना जो न हो, उसे हेतु कहते हैं और जो कार्य से अव्यवहित पूर्ववर्ती हो, उसे कारण कहते हैं। कारण के बिना कार्य की उत्पत्ति कदापि संभव नहीं है। 1. बृहदवृत्ति, पत्र 308 2. वही, पत्र 308 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org