________________ छत्तीसवाँ अध्ययन : जीवाजीवविभक्ति] मनुष्य-निरूपण 165. मण्या दुविहभेया उ ते मे कित्तयओ सुण / समुच्छिमा य मणुया गभवक्कन्तिया तहा // [165] मनुष्य दो प्रकार के हैं—सम्मूच्छिम और गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भोत्पन्न) मनुष्य / 196. गम्भवक्कन्तिया जे उ तिविहा ते वियाहिया। प्रकम्म-कम्मभूमा य अन्तरद्दीवया तहा / / [166] जो गर्भ से उत्पन्न मनुष्य हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं-अकर्मभूमिक, कर्मभूमिक और अन्तर्दीपक / 167. पन्नरस-तीसइ-विहा भेया अट्ठवीसई / संखा उ कमसो तेसि इइ एसा वियाहिया / / [197] कर्मभूमिक मनुष्यों के पन्द्रह, अकर्मभूमिक मनुष्यों के तीस और अन्तर्वीपक मनुष्यों के 28 भेद हैं। 198. संमुच्छिमाण एसेव भेओ होइ आहिओ। लोगस्स एगदेसम्म ते सव्वे वि वियाहिया / [198] सम्मूच्छिम मनुष्यों के भेद भी इसी प्रकार हैं। वे सब भी लोक के एक भाग में होते हैं, समग्र लोक में व्याप्त नहीं। 199. संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य / ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य॥ ___ [196] (उक्त सभी प्रकार के मनुष्य) प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं। 200. पलिओवमाई तिणि उ उक्कोसेण वियाहिया / ___ आउट्टिई मणुयाणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया // [200] मनुष्यों की आयुस्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है। 201. पलिओवमाइं तिण्ण उ उक्कोसेण वियाहिया। पुवकोडीपुहत्तेणं अन्तोमुहत्तं जहन्निया / / 202. कायट्ठिई मणुयाणं अन्तरं तेसिमं भवे। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमुहुत्तं जहन्नयं // [201-202] उत्कृष्टतः पूर्वकोटिपृथक्त्व-अधिक तीन पल्योपम की और जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की मनुष्यों की कायस्थिति है / उनका अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त का और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org