Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 834
________________ परिशिष्ट 2 : गाधानुक्रमणिका] [723 7 वेमायाहिं सिक्खाहिं वेयण-वेयावच्चे वेयणीयपि दुविहं वेया अहीया न हवंति ताणं वेयावच्चे निउत्तेणं वेयाणं च मुहं बूहि वोच्छिद सिणेहमप्पणो 14 mro . 3 mory 9 rXWWSmore rur 4 21 18 36 सई च जइ मुच्चेज्जा सकम्मसेसेण पुराकएणं सक्खं खु दीसइ तवोविसेसे सगरोवि सागरंत सच्चसोयप्पगडा सच्चा तहेव मोसा य सन्नाणनाणोवगए महेसी सणंकुमारो मणुस्सिदो सत्तरससागराइ सत्तरस सागरा उ सत्तू य इइ सत्तेव सहस्साई सत्तेव सागरा उ सत्थगहणं विसभक्खण च सत्थं जहा परमतिक्खं सहस्स सोयं गहणं वयंति सइंधयारउज्जोरो सद्दाणुगासाणुगए य जीवे सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं सद्दाणुवाएण परिग्गहेण सद्दा विविहा भवंति लोए सद्दे अतित्त य परिग्गहे य सद्दे रूवे य गंधे य सद्दे विरत्तो मणुयो विसोगो सद्देसु जो गिद्धिमुवेइ स देवगन्धव्वमणुस्सपूइए सद्ध नगरं किच्चा सन्नाइपिंड जेमेइ 20 सन्निहिं च न कुव्वेज्जा 33 स पुन्वमेवं न लभेज्ज पच्छा समए वि संतई पप्प 12 समणा मु एगे वयमाणा समणो अहं संजओ बंभयारी 14 समणं संजयं दंतं समयाए समणो होइ समयाए सव्वभूएसु 32 समरेसु अगारेसु 2 सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं 37 सम्ममाणे पाणाणि सम्मइंसणरत्ता समं च संथवं थीहि सम्म धम्म वियाणित्ता 23 समागया वह तत्थ 37 समावन्नाण संसारे 228 समिईहिं मज्झं सुसमाहियस्स समिक्ख पंडिए तम्हा समुद्दगंभीरसमा दुरासया समुयाणं उंछमेसिज्जा 162 समुट्टियं तहि संतं 267 सयणासणठाणे वा सयणासणपाणभोयणं सयं गेहं परिच्चज्ज सरा वीयरागे वा 40 सरीरमाहु नाव त्रि 45 सल्लं कामा विस कामा 41 स वीयरागो कयसव्व किच्चो 14 सव्वजीवाण कम्मं तु 42 सबसिद्धगा चेव 10 सव्वभवेसु अस्साया 47 सव्वं गंथं 37 सव्वं जगं 48 सव्वं तनो जाणइ पासए य सवं विलवियं 19 सव्वं सुचिण्णं सफलं m from my mp mpr mr mar or mr mm GmWW muKG0x hd .WWN100 32 108 33 18 mmmr mar I 32 16 32 32 1 4 14 32 106 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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