________________ ग्यारहवां अध्ययन : बहुश्रुतपूजा] [185 को नष्ट करने के कारण ‘इन्द्र' को 'पुरन्दर' कहा गया है / वस्तुतः इन्द्र के 'सहस्राक्ष' और 'पुरन्दर' ये दोनों नाम लोकोक्तियों पर आधारित हैं।' ___ उत्तिट्टते दिवायरे-दो अर्थ : (1) उत्थित होता हुआ सूर्य-चूणिकार के अनुसार मध्याह्न तक का सूर्य उत्थित होता हुआ माना गया है, उस समय तक सूर्य का तेज (प्रकाश और प्रातप) बढ़ता है। (2) उगता हुअा सूर्य-बाल सूर्य / वह सौम्य होता है, बाद में तीव्र होता है / णक्खत्तपरिवारिए-अश्विनी, भरणी आदि 27 नक्षत्रों के परिवार ये युक्त / 27 नक्षत्र ये हैं(१) अश्विनी, (2) भरणी, (3) कृत्तिका, (4) रोहिणी, (5) मृगशिरा, (6) आर्द्रा, (7) पुनर्वसु, (8) पुष्य, (6) अश्लेषा, (10) मघा, (11) पूर्वाफाल्गुनी, (12) उत्तराफाल्गुनी, (13) हस्त, (14) चित्रा, (15) स्वाति, (16) विशाखा, (17) अनुराधा, (18) ज्येष्ठा, (16) मूल, (20) पूर्वाषाढ़ा, (21) उत्तराषाढ़ा, (22) श्रवण, (23) धनिष्ठा, (24) शतभिषक, (25) पूर्वाभाद्रपदा, (26) उत्तराभाद्रपदा और (27) रेवती / 2 / ___ सामाइयाणं कोद्रागारे-सामाजिक-कोष्ठागार-समाज का अर्थ है समूह / सामाजिक का अर्थ है—समूहवृत्ति (सहकारीवृत्ति) वाले लोग, उनके कोष्ठागार अर्थात् विविध धान्यों के कोठार प्राचीन काल में भी कृषकों या व्यापारियों के सामूहिक अन्नभण्डार (गोदाम) होते थे, जिनमें नाना प्रकार के अनाज रखे जाते थे / चोर, अग्नि एवं चहों आदि से बचाने के लिए पहरेदारों को नियुक्त करके उनकी पूर्णत: सुरक्षा की जाती थी। जंबू नाम सुदंसणा, अणाढियस्स देवस्स-प्रणाढिय-अनादृतदेव, जम्बूद्वीप का अधिपति व्यन्तरजाति का देव है / सुदर्शना नामक जम्बूवृक्ष जम्बुद्वीप के अधिपति अनादृत नामक देव का आश्रय (निवास) स्थानरूप है, उसके फल अमृततुल्य हैं / इसलिए वह सभी वृक्षों में श्रेष्ठ माना जाता है। सोया नीलवंतपवहा : शीता नीलवत्प्रवहा-मेरु पर्वत के उत्तर में नीलवान् पर्वत है / इसी पर्वत से शीता नदी प्रवाहित होती है, जो सबसे बड़ी नदी है और अनेक जलाशयों से व्याप्त है। 1. (क) सहस्सखेत्ति--'पंचमंतिसयाई देवाणं तस्स सहस्सो अक्खीणं, तेसि णीतिए दिमिति / अहवा जं सहस्सेण अक्खीणं दीसति, तं सो दोहि अक्खीहिं अब्भहियतराय पेच्छति / ' -उत्तरा. चूणि, पृ. 199 (ख) लोकोक्त्या च पुर्दारणात् पुरन्दरः / (ग) ऋग्वेद 1310217, 1.10918, 212017, 3154115, 230 / 11, 6 / 16 / 14 (क) जाव मज्झण्णो ताव उट्रेति, ताव ते तेयलेसा वद्धति, पच्छा परिहाति, अहवा उत्तितो सोमो भवति, हेमंतियबालसूरियो। (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 351 (ग) होडाचक्र, 27 नक्षत्रों के नाम 3. वृहद्वृत्ति, पत्र 351 4. (क) वही, पत्र 352 : शीता---शीतानाम्नी, नीलवान:-मेरोरुत्तरस्यां दिशि वर्षधरपर्वतस्ततः "प्रवहति... नीलवत्प्रवहा / (ख) सीता सब्वणदीण महल्ला, बहुहिं च जलासतेहिं च प्राइण्णा। -उत्त. चूणि, पृ. 200 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org