________________ 612] [उत्तराध्ययनसूत्र कुन्द के फूल के समान है, दूध की धारा के सदृश तथा रजत (चाँदी) और हार (मोती की माला) के समान (सफेद) है। विवेचन--छह लेश्याओं का वर्ण-- एक-एक शब्द में कहें तो कृष्णलेश्या का रंग काला, नीललेश्या का नीला, कापोतलेश्या का कुछ काला कुछ लाल, तेजोलेश्या का लाल, पद्मलेश्या का पीला और शुक्ललेश्या का श्वेत बताया गया है / यह वर्णकथन मुख्यता के आधार पर है / भगवतीसूत्र के अनुसार प्रत्येक लेश्या में एक वर्ण तो मुख्यरूप से और शेष चार वर्ण गौणरूप से पाए जाते हैं।' 3. रसद्वार 10. जह कडुयतुम्बगरसो निम्बरसो कडयरोहिणिरसो वा / एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ किण्हाए नायवो॥ जैसे कड़वे तुम्बे का रस, नीम का रस अथवा कड़वी रोहिणी का रस (जितना) कड़वा होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक कडुवा कृष्णलेश्या का रस जानना चाहिए। 11. जह तिगडुयस्स य रसो तिक्खो जह हथिपिप्पलीए वा। एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ नोलाए नायब्वो // [11] त्रिकटुक (सोंठ, पिप्पल और काली मिर्च इन त्रिकटुक) का रस अथवा गजपीपल का रस जितना तीखा होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक तीखा नीललेश्या का रस समझना चाहिए। 12. जह तरुणअम्बगरसो तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसमो। __ एत्तो वि अणन्तगुणो रसो उ काऊए नायव्धी // [12] कच्चे (अपक्व) आम और कच्चे कपित्थ फल का रस जैसा कसैला होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक (कसैला) कापोतलेश्या का रस जानना चाहिए। 13. जह परियणम्बगरसो पक्ककविटुस्स वावि जारिसो। एत्तो वि अनन्तगुणो रसो उ तेऊए नायव्वो // [13] पके हुए ग्राम अथवा पके हुए कपित्थ का रस जैसे खटमीठा होता है, उससे भी अनन्तगुणा खटमीठा रस तेजोलेश्या का समझना चाहिए। 14. वरवारुणीए व रसो विविहाण व आसवाण जारिसओ। महु-मेरगस्स व रसो एत्तो पम्हाए परएणं // [14] उत्तम मदिरा का रस (फूलों से बने हुए) विविध आसवों का रस, मधु (मद्यविशेष) तथा मैरेयक (सरके) का जैसा रस (कुछ खट्टा तथा कुछ कसैला) होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक (अम्ल-कसैला) रस पद्मलेश्या का समझना चाहिए। 1. (क) प्रज्ञापना पद 17 (ख) 'एयानो णं भंते ! छल्लेसानो कइसु वन्नेसु साहिज्जति ? गोयमा! पंचस व स साहिज्जति / "..... -भगवती श. 7, उ. 3, सू. 226 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org