________________ नवम अध्ययन : नमिप्रवज्या] [147 30. 'असई तु मणुस्सेहि मिच्छादण्डो पजुजई। अकारिणोऽत्थ बज्झन्ति मुच्चई कारगो जणो / ' [30] मनुष्यों के द्वारा अनेक बार मिथ्या दण्ड का प्रयोग (अपराधरहित जीवों पर भी अज्ञान या अहंकारवश दण्डविधान) कर दिया जाता है। (चौर्यादि अपराध) न करने वाले यहाँ बन्धन में डाले (बांधे) जाते हैं और वास्तविक अपराधकर्ता छूट जाते हैं / विवेचन---इन्द्र-कथित हेतु और उदाहरण—'श्राप मिष्ठ क्षत्रिय शासक होने से चोर आदि अधार्मिक व्यक्तियों का निग्रह करके नगर में शान्ति स्थापित करने वाले हैं। जो धार्मिक शासक होता है, वह अधार्मिकों का निग्रह करके नगर में शान्ति स्थापित करता है / जैसे भरतादि नप, यह हेतु है। चोरादि अधार्मिक व्यक्तियों का निग्रह करके नगरक्षेम किये बिना आपका शासकत्व एवं धार्मिकत्व घटित नहीं हो सकता, यह कारण है / अतः अधार्मिकों का निग्रह करके नगरक्षेम किये बिना आपका दीक्षा लेना अनुचित है।' ममि राषि के उत्तर का तात्पर्य हे विप्र! प्रजापीडक जनों का दमन करके नगर में शान्ति स्थापित करने के बाद प्रव्रजित होने का आपका कथन एकान्ततः उपादेय नहीं है; क्योंकि बहुत बार वास्तविक अपराधी जाने नहीं जाते, इसलिए वे दण्डित होने से बच जाते हैं और निरपराध दण्डित किये जाते हैं। ऐसी स्थिति में निरपराधियों को जाने विना ही दण्ड दे देने वाले शासक में धार्मिकता कैसे घटित हो सकती है ? अतः आपका हेतु प्रसिद्ध है / आध्यात्मिक दृष्टि से नमि राजर्षि का तात्पर्य यह था कि ये इन्द्रियरूपी तस्कर ही मोक्षाभिलाषियों के द्वारा निग्रह-दमन करने योग्य हैं, क्योंकि ये ही प्रात्मगुणरूपी सर्वस्व के अपहारक हैं / जो-जो सर्वस्व-अपहारक होते हैं, वे ही निग्रहणीय होते हैं, जैसे तस्कर आदि / इस प्रकार नमि राजर्षि द्वारा उक्त हेतु एवं कारण है। ___ आमोषादि चारों के अर्थ (1) आमोष-पंथमोषक-बटमार, मार्ग में लूटने वाला, सर्वस्व हरण करने वाला। (2) लोमहार--मारकर सर्वस्व हरण करने वाला, डाकू, पीड़नमोषक-पीड़ा पहुँचा कर लूटने वाला। (3) ग्रन्थिभेदक--द्रव्य सम्बन्धी गांठ कैंची आदि के द्वारा कुशलता से काट लेने वाला, या सुवर्णयौगिक या नकली सोना बना कर युक्ति से अथवा इसी तरह के दूसरे कौशल से लोगों को ठगने वाला। (4) तस्कर--सदैव चोरी करने वाला। मिच्छादंडो पउंजई-अज्ञान, अहंकार और लोभ आदि कारणों से मनुष्य मिथ्यादण्ड का प्रयोग करता है, अर्थात् --वह निरपराध को देश-निष्कासन तथा शारीरिक निग्रह-यातना आदि दण्ड दे देता है। 1. (क) बहवृत्ति, पत्र 312 (ख) उत्त., प्रियदर्शिनी टोका, भा. 2, पृ. 410 2. (क) बृहदवत्ति, पत्र 312 (ख) उत्त., प्रियदर्शिनी टीका, भा. 2, पृ. 412-413 3. (क) उत्तरा. चूणि, पृ. 183 (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 312 4. 'मिथ्या-व्यलोकः, किमुक्तं भवति ?-अनपराधिष्वज्ञानाहंकारादिहेतुभिरपराधिष्विव दण्डनं-दण्ड:-देश त्याग-शरीरनिग्रहादिः / ' -बृहद्वृत्ति, पत्र 313 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org