________________ 164] [उत्तराध्ययनसूत्र [8] वायुकाय में गया हुआ जीव उत्कृष्टत: असंख्यात काल तक रहता है। अतः गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। 9. वणस्सइकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालमणन्तदुरन्तं समयं गोयम ! मा पमायए / [6] बनस्पतिकाय में उत्पन्न हुआ जोव उत्कृष्टतः दुःख से समाप्त होने वाले अनन्तकाल तक (वनस्पतिकाय में ही जन्म-मरण करता) रहता है / इसलिए हे गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद न करो। 10. बेइन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए / [10] द्वीन्द्रिय काय-पर्याय में गया (उत्पन्न) हुआ जीव अधिक-से-अधिक संख्यातकाल तक रहता है / अतः गौतम ! क्षणभर का भी प्रमाद मत करो। 11. तेइन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखिज्जसन्नियं समयं गोयम ! मा पमायए / [11] त्रीन्द्रिय अवस्था में गया (उत्पन्न) हुआ जीव उत्कृष्टत: संख्यातकाल तक रहता है, अतः हे गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। 12. चउरिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे / कालं संखिज्जसनियं समयं गोयम! मा पमायए // [12] चतुरिन्द्रिय अवस्था में गया हुआ जीव उत्कृष्टतः संख्यात काल तक (उसी में) रहता है। अतः गौतम ! समयमात्र भी प्रमाद मत करो। 413. पंचिन्दियकायमइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे / सत्तट्ठ-भवग्गहणे समयं गोयम! मा पमायए / [13] पंचेन्द्रियकाय में उत्पन्न हुअा जोब उत्कृष्टतः सात या पाठ भवों तक (उसी में जन्मता-मरता) रहता है / इसलिए गौतम ! समयमात्र का भी प्रमाद मत करो। 14. देवे नेरइए य अइगओ उक्कोसं जीवो उ संवसे / __ इक्किक्क-भवग्गहणे समयं गोयम ! मा पमायए / [14] देवयोनि और नरकयोनि में गया हुआ जीव उत्कृष्टतः एक-एक भव (जन्म) तक रहता है / इसलिए गौतम ! एक क्षण का भी प्रमाद मत करो। 15. एवं भव-संसारे संसरइ सुहासुहेहि कम्मेहि / ___ जीवो पमाय-बहुलो समयं गोयम ! मा पमायए // [15] इस प्रकार प्रमादबहुल (अनेक प्रकार के प्रमादों से व्याप्त) जीव शुभाशुभकर्मों के कारण जन्म-मरण रूप संसार में परिभ्रमण करता है। इसलिए हे गौतम ! क्षणभर भी प्रमाद मत करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org