________________ प्रथम अध्ययन : विनयसूत्र [11 अत्यधिक भाषण-निषेध के तीन मुख्य कारण-(१) बोलने का विवेक न रहने से असत्य बोला जाएगा या विकथा करने लगेगा, (2) अधिक बोलने से ध्यान, स्वाध्याय, अध्ययन आदि में विक्षेप होगा, (3) वातक्षोभ या वात कुपित होने को शंका है।' समय पर अध्ययन और एकाको ध्यान साधु के लिए स्वाध्याय, अध्ययन, भोजन, प्रतिक्रमण आदि सभी प्रवृत्तियाँ यथाकाल और मण्डली में करने का विधान प्रवचनसारोद्धार में सूचित किया है, किन्तु ध्यान एकाकी (द्रव्य से विविक्त शय्यासनादियुक्त तथा भाव से रागद्वेषादिरहित होकर) किया जाता है; जैसा कि उत्तराध्ययनचूणि में लौकिक प्रतिपत्ति का संकेत है-एक का ध्यान, दो का अध्ययन और तीन आदि का ग्रामान्तरगमन / / अविनीत और विनीत शिष्य का स्वभाव 12. मा गलियस्सेव कसं, वयणमिच्छे पुणो पुणो। कसं व दट्ठमाइण्णे, पावगं परिवज्जए / [12.] जैसे गलिताश्व (अडियल-अविनीत घोड़ा) बार-बार चाबुक की अपेक्षा रखता है, वैसे (विनीत शिष्य) (गुरु के प्रादेश) वचन की अपेक्षा न करे किन्तु जैसे आकीर्ण (उत्तम जाति का शिक्षित) अश्व चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है, वैसे ही गुरु के आकारादि को देख कर ही पापकर्म (अशुभ आचरण) को छोड़ दे। - 13. अणासवा थूलवया कुसीला, मिपि चण्डं पकरेंति सोसा। चित्ताणुया लहु दक्खोववेया, पसायए ते हु दुरासयं पि / [13.] गुरु के वचनों को नहीं सुनने वाले, ऊटपटांग बोलने वाले (स्थूलभाषी) और कुशील (दुष्ट) शिष्य मृदु स्वभाव वाले गुरु को भी चण्ड (क्रोधी) बना देते हैं, जब कि गुरु के मनोऽनुकूल चलने वाले एवं दक्षता से युक्त (निपुणता से कार्य सम्पन्न करने वाले) (शिष्य), दुराशय (शीघ्र ही कुपित होने वाले दुराश्रय) गुरु को भी झटपट प्रसन्न कर लेते हैं / / विवेचन-गलियस्स-गलिताश्व का अर्थ है—अविनीत घोड़ा। उत्तराध्ययननियुक्ति में गंडी (उछलकूद मचाने वाला), गली (पेट में कुछ निगलने पर ही चलने वाला) और मराली (गाड़ी आदि में जोतने पर मृतक-सा होकर बैठ जाने वाला-मरियल अथवा लात मारने वाला), ये तीनों शब्द दुष्ट घोड़े और बैल के अर्थ में पर्यायवाची हैं / 3 1. बृहदवत्ति, पत्र 47 2. उक्तं हि--'एकस्य ध्यान, द्वयोरध्ययनं, त्रिप्रभति ग्रामः' एवं लौकिकाः संप्रतिपन्नाः।' -उत्तराध्ययनचूणि, पृ. 29 3. (क) बृहद् वृत्ति, पत्र 48 (ख) 'गंडो गली मराली, अस्से गोणे य हुँति एगट्ठा।' ---उत्तराध्ययननियुक्ति, गा. 64 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org