Book Title: Agam 04 Samvayang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 9
________________ आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय' समवाय/ सूत्रांक समवाय-४ सूत्र-४ चार कषाय कहे गए हैं-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय, लोभकषाय । चार ध्यान हैं-आर्तध्यान, रौद्र ध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान | चार विकथाएं हैं । जैसे-स्त्रीकथा, भक्तकथा, राजकथा, देशकथा | चार संज्ञाएं कही गई हैं । जैसे-आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा, परिग्रहसंज्ञा । चार प्रकार का बन्ध कहा गया है । जैसेप्रकृतिबन्ध स्थितिबन्ध, अनुभावबन्ध, प्रदेशबन्ध । चार गव्यूति का एक योजन कहा गया है। अनुराधा नक्षत्र चार तार वाला कहा गया है । पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र चार तारा वाला कहा गया है । उत्तराषाढ़ा नक्षत्र चार तारा वाला कहा गया है। इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है। तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति चार सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति चार पल्योपम की कही गई है । सौधर्म-ईशानकल्पों में कितनेक देवों की स्थिति चार पल्योपम की है। सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति चार सागरोपम है । इन कल्पों के जो देव कृष्टि, सुकृष्टि, कृष्टि-आवर्त, कृष्टिप्रभ, कृष्टियुक्त, कृष्टिवर्ण, कृष्टिलेश्य, कृष्टिध्वज, कृष्टिशृंग, कृष्टिसृष्ट, कृष्टिकूट और कृष्टि-उत्तरावतंसक नाम वाले विशिष्ट विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति चार सागरोपम कही गई है । वे देव चार अर्धमासों (दो मास) में आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के चार हजार वर्ष में आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्य-सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो चार भवग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। समवाय-४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 9

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