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३४ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय और लोक-व्यापी है । वह दो प्रकार का है-निश्चय काल और व्यवहार काल । निश्चय समय रूप है, और अनन्त है । व्यवहार क्षण, पल, आवली, घड़ी, मुहर्त, दिन, रात्रि और अहोरात्र रूप होता है। पक्ष, मास, वर्षे और युग, इसके ही विभाग हैं। आज का विज्ञान काल को भी स्वीकार करता है, जिसको Time कहा जाता है।
आज के जड़ विज्ञान के मूल तत्त्व, इन पांच अजीव तत्त्वों में विद्यमान हैं, उनके अनुसंधान की आवश्यकता है। प्राचीन ग्रोस से लेकर, आज के नवीनतम वैज्ञानिकों ने Atom परमाणु अथवा अणु की सत्ता को स्वीकार किया है । अणु अनन्त हैं, इस तथ्य को भी स्वीकार करते रहे हैं। इनके संयोग एवं वियोग के कारण ही जगत में स्थल पदार्थ बनते और बिगड़ते हैं। इस विषय में सब वैज्ञानिक एक मत हैं। पुद्गल को सत्ता में विवाद नहीं है।
वैज्ञानिक पहले धर्म एवं अधर्म को नहीं मानते थे। परंतु न्यूटन ने गति तत्त्व के सिद्धान्त को स्थापित किया। जहाँ गति होगी, वहाँ स्थिति भी होगी। अतएव ईथर के नाम से एक तत्त्व को मान लिया गया। वह दोनों का काम करता है। कांट और हेगल आकाश को एक मानसिक व्यापार कहते थे, रसेल ने उसे एक तत्त्व के रूप में स्थापित कर दिखाया। काल को भी पहले तत्त्व नहीं माना गया, परन्तु फ्रांस के दार्शनिक बर्गसां ने काल को एक तत्त्व के रूप में स्थापित कर दिया। विज्ञान और जीव :
एक नास्तिक दर्शन को छोड़कर शेष समस्त आस्तिक दर्शन जीव तत्त्व को स्वीकार ही नहीं करते, अपितु अपनी-अपनी अवधारणा के अनुसार उसके स्वरूप का भी प्रतिपादन करते हैं। उसका लक्षण तथा परिभाषा भी करते हैं । उसकी व्याख्या करते हैं । संख्या बतलाते हैं । भेद और प्रभेदों का भी वर्णन करते हैं। जैन दर्शन जीव की संख्या अनन्त मानता है । जीव का लक्षण उपयोग है । वह अमूर्त है । अपने कर्मों का कर्ता है । कर्मफल का भोक्ता है । स्व-देह परिमाण है । उर्ध्व गमनशील है। प्राणी विज्ञान :
विज्ञान की एक शाखा है, प्राणी विज्ञान, जिसको Biology कहा जाता है। यह विज्ञान जैन दर्शन के प्राणी विज्ञान से अनेक अंशों में मेल खाता है। जैन सिद्धान्त पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति में जीव
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