Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 187
________________ १७८ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय ३ निक्षेप भाषा के माध्यम से मनुष्य अपने भावों की अभिव्यक्ति करता है। भाषा अभिव्यक्ति का अनन्य साधन हैं। भाषा शब्दों का तथा वाक्यों का समुदाय है। मनुष्य का समग्र व्यवहार भाषा के द्वारा चलता है । भाषा का प्रयोग करने के लिए शब्दों के यथार्थ अर्थ का ज्ञान परम आवश्यक है। शब्दों का समुचित प्रयोग भी एक सिद्धान्त है । उस सिद्धान्त को जैन दर्शन में निक्षेपवाद कहा गया है । निक्षेप का दूसरा नाम न्यास भी है । शब्दों का अर्थों में और अर्थों का शब्दों में आरोप करना, न्यास अथवा निक्षेप कहलाता है। शब्दों के भेद : व्याकरण शास्त्र में शब्दों के चार भेद है-नाम, आख्यात. उपसर्ग और नियात । घट-पट आदि नाम शब्द हैं । गच्छति, पठति आदि आख्यात क्रिया अथवा धातु शब्द हैं। प्र, परा, उप आदि उपसर्ग शब्द हैं । यथा, तथा, एवं आदि नियात शब्द हैं । इन चार प्रकार के शब्दों में निक्षेप का सम्बन्ध केवल नाम शब्दों से है, अन्य तीन प्रकार के शब्दों से नहीं । क्योंकि शेष तीन शब्द क्रिया, उपसर्ग और नियात वस्तु-वाचक नहीं होते। निक्षेप हमें बतलाता है, कि नाम शब्द के कम से कम चार अर्थ अवश्य होंगे । अतः तत्त्व को समझने के लिए निक्षेप आवश्यक है। निक्षेप की परिभाषा : निक्षेप सिद्धान्त अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण करके प्रस्तुत अर्थ के प्रयोग को दिशा को बतलाता है । जैसे किसी ने कहा-राजा तो मेरे हृदय में है । यहाँ राजा शब्द का अर्थ राजा का ज्ञान है, क्योंकि देहवान राजा का किसी के हृदय में रहना, असम्भव है। उक्त वाक्य में, राजा का ज्ञान, यह अर्थ प्रस्तुत है, न कि स्वयं राजा । निक्षेप अप्रासंगिक अर्थ का निराकरण कर प्रासगिक अर्थ का निरूपण करता है। निक्षेप के भेद : निक्षेप के चार भेद हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। इन का उपयोग केवल शास्त्रों में ही नहीं, व्यवहार में होता है। निक्षेप के बिना लोक व्यवहार भी नहीं चल सकता । शास्त्रों का मर्म भी निक्षेप के बिना समझा नहीं जा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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