Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 193
________________ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय पर्याय के दो भेद हैं— अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्याय । जो भूत और भविष्यत् काल का स्पर्श न करने वाला, केवल शुद्ध वर्तमान कालगत वस्तु स्वरूप है, उसको अर्थ पर्याय कहते हैं । यह ऋजु सूत्र नय का विषय है । जिससे प्रवृत्ति एव निवृत्ति के लिए कारणभूत जल आहरण आदि प्रयोजन साधक क्रिया हो सके, उसको व्यञ्जन अथवा व्यक्ति कहते हैं और इससे युक्त जो पर्याय उसको व्यञ्जन पर्याय कहते हैं । जैसे मिट्टी के स्थास, कोश, कुसूल, घट तथा कपाल आदि रूप व्यञ्जन पर्याय हैं । ये दो प्रकार की पर्याय हैं । १८४ जो द्रव्य के समस्त प्रदेशों में रहते हैं, तथा जिनका अनुवर्तन समस्त पर्यायों में होता है, उनको गुण कहा जाता है । जैसे वस्तुत्व, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श आदि । वस्तुत्व आदि गुण मिट्टी के समस्त प्रदेशों में रहते हैं, और पिण्ड आदि उत्तरोत्तर पर्यायों में, उनका अनुगमन भी होता है । अतः इनको गुण कहते हैं । परन्तु पिण्ड आदि पर्यायों का स्थास आदि पर्यायों में ऐसा अन्वय नहीं होता । अतः इनको गुण नहीं कह सकते हैं । अतः गुण और पर्यायों में परस्पर भेद है । गुण दो प्रकार के होते हैंसामान्य गुण और विशेष गुण 1 गुण और पर्याय का आधार द्रव्य भी दो प्रकार का है - जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य । द्रव्य का अर्थ है - सत् । सत् लक्षण इस प्रकार है"उत्पाद व्यय धीव्य युक्तं सत् ।" अर्थात् जिसमें उत्पति, विनाश और ध्रुवत्व - ये तीनों एक साथ एक में रहें, वह द्रव्य है, वह सतु है । जैसे कि स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाले पुण्य कर्म का उदय होने पर जीव द्रव्य में, मनुष्य भव का व्यय और देव भव का उत्पाद तथा चेतन भाव का ध्रुवत्व भी बना रहता है । इसी प्रकार अजीव द्रव्य में भी समझ लेना चाहिए। जैसे मिट्टी रूप में पिण्ड रूप का व्यय होता है, घट रूप का उत्पाद होता है, और मिट्टी के स्वरूप का धीव्य है । अतः अजीव द्रव्य में भी उत्पाद, व्यय और धोव्य- ये तीनों होते हैं । द्रव्य के दो भेद संक्षेप में कहे हैं । जैन दर्शन वस्तु मात्र को अनेकान्तात्मक मानता है । वस्तु कभी एकान्त रूप नहीं होती है । एकान्तवाद मिथ्या होता है, और अनेकांतवाद सम्यक् होता है । यह अनेकान्तात्मक वस्तु ही प्रमाण का विषय है । इसका परिज्ञान, प्रमाण से होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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