Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 189
________________ १८० अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय भेद हैं-एक आगम भाव निक्षेप और दूसरा नो आगम भाव निक्षेप । तद् वस्तु विषय शास्त्र को जानने वाला वर्तमान में उपयोग सहित आत्मा आगम भाव निक्षेप है। जैसे राजा के ज्ञान से संयुक्त उपयोग सहित मनुष्य भाव आगम राजा है । वर्तमान में उस पर्याय सहित वस्तु को नो आगम भाव निक्षेप कहते हैं। जैसे जो वस्तुतः राजा है, उसे राजा कहना । नो आगम निक्षेप ही वास्तविक वस्तु को कहता है। आग को आग, पानी को पानी, निक्षेप के इसी भेद से कहे जाते हैं। भाब निक्षेप का सम्बन्ध केवल वर्तमान पर्याय से ही है । अतः इस निक्षेप में द्रव्य निक्षेप की भांति ज्ञायक शरीर आदि भेद नहीं होते । भाव निक्षेप वर्तमान क्रिया परिणत वस्तु को ही ग्रहण करने वाला होता है। नय और निक्षेप : नय और निक्षेप में विषय और विषयि-भाव सम्बन्ध है। नय ज्ञानात्मक है, और निक्षेप ज्ञेयात्मक । निक्षेप को जानने वाला नय है । शब्द-अर्थ में जो वाच्य-वाचक सम्बन्ध है, उसके स्थापन की क्रिया का नाम, निक्षेप है, और वह नय का विषय है तथा नय उसका विषयी होता है। प्रथम के तीन निक्षेप द्रव्याथिक नय के विषय और अन्तिम निक्षेप पर्यायाथिक नय का विषय है। बाल, युवा एवं मनुष्य आदि भिन्न-भिन्न अवस्थाओं वाले मनुष्य में नाम का विच्छेद नहीं देखा जाता । अतः नाम निक्षेप अन्वयी है, और यही कारण है, कि वह द्रव्याथिक नय का विषय है। अन्वयी होने के कारण स्थापना निक्षेप भी द्रव्यार्थिक नय का विषय मानने में तर्क की आवश्यकता नहीं है । इस प्रकार का अन्वयित्व, भाव निक्षेप में नहीं है । अतः वह पर्यायार्थिक नय का विषय माना गया है। स्व-पर चतुष्टय : अनेकान्त और स्याद्वाद को समझने के लिए प्रमाण, नय, निक्षेप और सप्त भंगी की तो आवश्यकता है ही। परन्तु चतुष्टय को समझना भी तो आवश्यक है। स्व की अपेक्षा पर सत् है, और पर की अपेक्षा स्व असत् भी हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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