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५० अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय
है, वह कभी कर्म नहीं बन सकता । अधर्म, धर्म, आकाश और काल, इन में भी कर्म बनने की योग्यता नहीं है । कर्म रूप में परिणत होने की योग्यता एकमात्र पुद्गल में है । समस्त पुद्गल भी कर्म नहीं बनता, केवल उसी पुद्गल परमाणु की कर्म संज्ञा हो जाती है, जो आत्म-संबद्ध होता है । आत्म-संबद्ध परमाणु- पुञ्ज को कार्मण शरीर कहा गया है । यही सूक्ष्म शरीर, अन्य स्थूल शरीर का, इन्द्रिय का और मन का जन्मदाता होता है । अन्य दर्शनों में कार्मण शरीर को लिंग शरीर कहा जाता है । संसार-चक्र का मूल हेतु यही है । समस्त विकारों की, विषयों की और विकल्पों की जड़ भी यही है । किसी वृक्ष की जड़ जब तक हरी-भरी है, तब तक उस पर पत्र, पुष्प और फल उत्पन्न होते ही रहेंगे। जड़ के सूख जाने पर न पत्र हैं, न फूल हैं, न फल हैं । यही स्थिति संसार और कार्मण शरीर की समझो ।
संसार-चक्र है, क्या ? जीव और पुद्गल का परस्पर संयोग, जैसा कि नीर एवं क्षीर में होता है, अयोगोलक में तथा अग्नि में होता है । मोक्ष क्या है ? दोनों का वियोग । जीव, मात्र जीव रह जाए । कर्म मात्र पुद्गल हो जाए। फिर संसार का चक्र कैसे घूम सकता है। जीव हो गया निर्विकार, निर्विषय तथा निर्विकल्प । यही स्थिति है, परम सुख की, परम शान्ति की, परम आनन्द की । तीर्थंकरों की देशना का सार तत्व भी यही है, कि पहले समझो, जानो, कि बन्धन क्या, कितना है, कैसा है ? फिर उस को तोड़ने का पुरुषार्थ करो । जोड़ने में पुरुषार्थं किया है, तो उसको तोड़ने में भी करो ।
जीव, कर्म और परमात्मा :
भारत के समस्त दर्शन ग्रंथों में तीन तत्त्वों पर मुख्य रूप से विचार किया है, विद्वानों ने - जीव, कर्म और परमात्मा । जीव की सत्ता अनादिअनन्त है । परन्तु उसकी तीन अवस्थाएं हैं- शुद्ध, अशुद्ध और शुद्धाशुद्ध । अपने स्वभाव से जीव शुद्ध है, पर कर्म के साथ संयोग हो जाने के कारण वह अशुद्ध हो जाता है। कर्म कट जाए, तो शुद्ध है । परमात्मा परम शुद्ध है । वह सादि अनन्त है । क्योंकि संसारी दशा में जीव अशुद्ध होता है । मुक्ति दशा में वह शुद्ध है । अशुद्धि का कारण कर्म वहाँ पर है, नहीं । कर्म की भी अपनी एक सत्ता | वह तो सादि सान्त है । व्यक्तिशः कर्म सादि- सान्त है, लेकिन प्रवाह रूपेण कर्म अनादि सान्त है और अनादि-अनन्त भी रहा है । अभव्य जीव का कर्म अनादि-अनन्त है । क्योंकि उसकी कर्म-ग्रन्थि कभी खुलती नहीं । भव्य जीव का कर्म सादि सान्त है । वह उत्पन्न हुआ है, तो
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