Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 147
________________ १३८ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय इनके अभाव में मनुज और पशु में कुछ भी अन्तर नहीं रहेगा। विज्ञान और तत्त्व-ज्ञान का उद्देश्य सत्य को जानना है। कला का उद्देश्य सौन्दर्य को उत्पन्न करना और उसका रस लेना है। नीति का उद्देश्य मनुष्य के आचरण को व्यवस्थित करना है । धर्म का सम्बन्ध मनुष्य के समग्र जीवन से है । धर्म किसी पक्ष की ओर से उदासीन नहीं हो सकता। धर्म को कोई नीति में परिगणित करता है, और कोई भक्ति में करता है, तथा कोई इसे झान से सम्बन्धित मानता है । भारतीय-दर्शन के अनुसार धर्म में ज्ञान, कमें और भक्ति तीनों का समन्वय है। इस प्रकार दर्शन की परिधि में मानव जीवन में उपयोगी सभी सिद्धान्तों का समावेश हो जाता है। यही कारण है, कि दर्शन की व्यापकता सभी क्षेत्रों में स्वीकार की गई है। पाश्चात्य विचारक भी दर्शन की व्यापकता की परिभाषा अथवा व्याख्या इस प्रकार से करते हैं। भले ही भारतीय-दर्शन और पाश्चात्यदर्शन में भौगोलिक, कालिक और राजनैतिक विभेद रहे हैं । परन्तु जीवन की व्याख्या के सम्बन्ध में मानव-जाति में किसी भी प्रकार का भेद नहीं रह सकता। क्या यूनान, यूरोप और अमेरिका के जीवन को ज्ञान, कर्म और भक्ति की आवश्यकता नहीं है ? निश्चय ही, इन तीनों की आवश्यकता से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। अतः दर्शन की व्यापकता मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्वीकृत होती रही है। दर्शन की विचार-प्रक्रिया : __जो व्यक्ति विचार करता है अथवा किसी तत्त्व का चिन्तन करता है, उसे दार्शनिक कहा जाता है। दर्शन की विचार-प्रक्रिया (The method of philosophy) अन्य विद्याओं के क्षेत्रों से भिन्न है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य वास्तव में दार्शनिक है, साधारण व्यक्ति दार्शनिक केवल इस अर्थ में है, कि वह दार्शनिक विषयों पर कुछ न कुछ विचार करता है और उनके सम्बन्ध में अपना मत रखता है। पर साधारण मनुष्य के विचार न तो दार्शनिक विषयों की गहराई में जाते हैं, और न नियमबद्ध और युक्तियुक्त होते हैं । सत्य तो यह है, कि इस प्रकार के विचार अस्पष्ट, अन्धविश्वासपूर्ण एवं पक्षपात से दूषित होते हैं। उसे दर्शन की संज्ञा न देकर अधिक से अधिक साधारण मनुष्य का दर्शन अथवा साधारण बुद्धिवाला दर्शन (philosophy common-sense) कहा जा सकता है।' १ पाश्चात्य दर्शन दर्पण, पृ. ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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