Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 149
________________ १४० अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय निकों की प्रयोगशाला में ही किया जा सकता है । विचार के क्षेत्र में भी हम प्रयोग कर सकते हैं । यदि हम साधारणतया किसी विचार, सिद्धान्त अथवा मत को सिद्ध नहीं कर सकते तो हम विचार क्षेत्र में उसे फिर प्रयोग करते हैं । प्रयोग का अर्थ है कि हम उस सिद्धान्त को मान कर चलते हैं, और उससे जितने अनुमान निकाले जा सकते हैं, उन्हें निकाल कर देखते हैं कि वे दूसरे सिद्धान्तों से, जिन्हें हम सिद्ध कर चुके हैं, अथवा इस प्रकार के तथ्यों से जिनके बारे में सन्देह नहीं किया जा सकता, मेल खाते हैं अथवा नहीं । उदाहरण के रूप से आगे चलकर अनुभववाद (Empiricism) प्रसंग में देखेंगे कि यह एक दार्शनिक प्रयोग था, जो इस सिद्धान्त को मानकर किया था, कि ज्ञान का एकमात्र साधन अनुभव है । इस सिद्धान्त के आधार पर दर्शन के इतिहास में लाक ( Locke) और बर्कले ( Berkeley) ने दर्शन शास्त्र की एक ऊँची इमारत खड़ी को थी । प्रसिद्ध अनुभववादी ह्य ूम (Hume) ने देखा कि इस इमारत की ईंटें तो अवश्य अनुभव की बनी हैं, पर उनकी चिनाई एवं जुड़ाई मुख्य-मुख्य स्थानों पर बुद्धि के मसाले से हो रही है। उसने जब बुद्धि की सहायता के बिना ही नए सिरे से इस इमारत को खड़ा करना चाहा, तो वह इसे भूमि से एक इंच भी ऊपर न उठा सका । इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि उसे सन्देहवाद (Scepticism) की शरण लेनी पड़ी और यह घोषणा करनी पड़ी कि विश्व का निश्चयात्मक ज्ञान सम्भव नहीं है । दार्शनिकों को इस प्रयोग से बड़ा लाभ हुआ । उन्होंने यह जान लिया कि केवल अनुभव के द्वारा विश्व का यथार्थ और निश्चयात्मक ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता । निगमन की विधि आगमन के ठीक विपरीत है | आगमन में हम अनुभव द्वारा ज्ञात हुए व्यक्तिगत तथ्यों के आधार पर एक सामान्य सिद्धांत को सिद्ध करते हैं, जबकि निगमन में ज्ञात हुए अथवा माने हुए सामान्य सिद्धान्त के आधार पर किसी व्यक्तिगत अथवा कम सामान्य तथ्य को सिद्ध करते हैं । जैसे यदि हम यह सिद्धान्त मान लें, कि जिस वस्तु का हमें अनुभव नहीं है, उसका अस्तित्व भी नहीं है । तो इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि ईश्वर का हमें अनुभव नहीं है । अतः ईश्वर का अस्तित्व नहीं है । दार्शनिक विचार पद्धति में आगमन और निगमन दोनों ही प्रकार का प्रयोग किया जाता है । इसके अतिरिक्त विचार की दो अन्य पद्धति भी हैं - विश्लेषण ( analysis ) और संश्लेषण (synthesis ) । इन दोनों पद्धतियों से भी दार्शनिक अपने विचारों का विश्लेषण करके किसी तथ्य पर पहुँचने का प्रयत्न करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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