Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 183
________________ १७४ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतोय जितनी क्रूरता कम होती जाएगी, और अधिकाधिक कोमलता बढ़ती जाएगी वह व्यक्ति उतना ही अधिक शुद्ध मानवीय गुणों से भावित होता हुआ मानवता की उत्तमोत्तम स्थिति को प्राप्त होता जाएगा । - जैन - वाङमय में लेश्याओं का विचार मानव के भावों की पवित्र एवं अपवित्र स्थिति का हमारे समक्ष एक स्पष्ट चित्र उपस्थित करता है । मनुष्य को क्या बनना है और क्या होना है, उसके लिये अपेक्षित है कि वह दुर्भावों से सम्बन्धित अधम लेश्याओं से अपने को मुक्त रखने के लिए निरंतर यत्नशील रहे । साथ ही, अपने सद्गुणों के विकास के हेतु उत्तम लेश्या के भावों को निरन्तर अभिवृद्धि करता रहे । मानवता इसी में है कि अप्रशस्त एवं दूषित विचार पथ का परित्याग करे और प्रशस्त एवं स्व-पर कल्याणकारी भावों के सत्पथ का अनुसरण करे । लेश्याओं का उपर्युक्त वर्णन अवकाशाभाव के कारण एवं साधारण जिज्ञासुओं की दृष्टि से संक्षेप में किया गया है । विस्तृत जानने की जिज्ञासा रखने वाले महानुभावों कों यथावकाश भगवती, प्रज्ञापना, उत्तराध्ययन सूत्र, षट् खण्डागम, धवला, गोम्मटसार एवं कर्म-ग्रन्थ आदि का अध्ययन करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194