Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 150
________________ पाश्चात्य दर्शन की पृष्ठभूमि १४१ दार्शनिक किसी समस्या पर विचार करते समय विश्लेषण और संश्लेषण में दोनों का प्रयोग करते हैं । विश्लेषण की विधि में वह उस समस्या के विभाग कर लेता है, और फिर प्रत्येक विभाग पर अलग-अलग विचार करता है, जिससे कि वह उस समस्या की गहराई तक पहुँच सके, और उससे सम्बन्धित जितने प्रयत्न हैं, सबका भली प्रकार खुलासा हो जाएँ । संश्लेश्ण की विधि में समस्या के अंशों के बारे में उसने जो अलग-अलग ज्ञान प्राप्त किया है, उसका समन्वय करके पूर्ण समस्या का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करता है । अंश और अंशी कभी एक दूसरे से अलग नहीं होते । अतः अंश का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अंशी को समझना पड़ता है, और अंशी का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उसके अंशों को समझना पड़ता है । जैसे साइकिल के पहिये का हमें ठीक ठीक ज्ञान नहीं हो सकता, यदि उसकी तीलियों का ज्ञान न हो और तीलियों के स्वभाव और उनकी उपयोगिता का ज्ञान नहीं हो सकता, यदि पहिये का ज्ञान न हो। इस प्रकार दार्शनिक लोग विश्लेषण और संश्लेषण विधि के द्वारा वस्तु तत्त्व का ठीक ठीक अन्वेषण करते हैं । दर्शन और व्यवहार : दर्शन के सम्बन्ध में जो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न होता है, वह यह है कि दर्शन व्यवहार की वस्तु है अथवा आदर्श की वस्तु है । आदर्श उसे कहा जाता है, जो हमारी कल्पना में तो हो, परन्तु वह कल्पना जीवन में कभी साकार न हो सके। इस प्रकार के सिद्धान्त को अथवा विकार को आदर्शवाद कहा जाता है । इसके विपरीत व्यवहारवाद का अर्थ होता है, कि वह सिद्धान्त, जिसे मनुष्य अपने जीवन के धरातल पर उतार सकता है, इस प्रकार आदर्श और व्यवहार की व्याख्या भारतीय दर्शनों में कम परन्तु पाश्चात्य दर्शनों में अधिक होती है । भारतीय दार्शनिकों का अपना ही विश्वास रहा है, कि हमारे दर्शन में कोई इस प्रकार का विचार नहीं है, जिसे हम अपने जीवन में न उतार सकें । मात्र कल्पना अथवा मात्र विचार यहाँ दर्शन का आधार कभी नहीं बन सका । इसके विपरीत योरुप के दर्शन में अनेक विचारधाराएँ इस प्रकार की हैं, जो केवल बुद्धि पर ही भार देती है, और केवल कल्पना लोक में विचरण करती हैं । जिनका आधार हमारा मानसिक जाल हो सकता है, व्यावहारिक जीवन नहीं । मेरे विचार में दर्शन में आदर्श और व्यवहार दोनों का समन्वय होना चाहिये। दर्शन के सम्बन्ध में ऊपर जो कुछ कहा गया है उससे दर्शन की उपयोगिता स्वतः सिद्ध हो जाती है । परन्तु दर्शन के सम्बन्ध में सामान्यजनों में अनेक प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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