Book Title: Adhyatma Pravachana Part 3
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 169
________________ १६० अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय समय-समय पर उठती रही हैं, और युगानुकूल उनका विभाजन भी होता रहा है। भारतीय दर्शन में भी हम दर्शन के क्षेत्र के विभाजन को अनेक रूपों में पाते हैं और इस सम्बन्ध में मैं पीछे लिख चुका है। विभाजन का एक ही उद्देश्य है, कि हम अपने विषय को ठीक से समझ सकें । इस प्रकार इस प्रकरण में पाश्चात्य-दर्शन की मूल मान्यताओं पर यहाँ प्रकाश डाला गया है। पाश्चात्य-दर्शन का विषय विस्तार इतना विशाल है, कि उसे व्यवस्थित रूप देने के लिए विभिन्न प्रकार से विभाजन अथवा विभाग किया गया है। किन्तु दर्शन-शास्त्र को जो निरन्तर प्रगतिशील हो, उसे किसी भी विभाग में विभक्त करना उचित नहीं, फिर भी यहां जो विभाग किए गए हैं, अथवा उसके मुख्य मुख्य विषयों का जो परिचय दिया गया है, उसमें कोई धारा छूट न जाए उसका ध्यान रखा गया है । वास्तव में आज के इस विज्ञानवादी युग में विज्ञान और राजनीति का इतना प्राबल्य है, कि इसकी समन शाखाओं का यहाँ परिचय नहीं दिया गया है, उनका परिचय यथा-स्थान और यथा-प्रसंग आगे दिया जाएगा । और उसके सम्बन्ध में उसके मूल सिद्धान्तों के विषय में लिखा जाएगा। पाश्चात्य दर्शन की पृष्ठभूमि अत्यन्त विस्तृत है। इतनी विस्तृत है, कि उसे यहां संक्षिप्त रूप में ही प्रस्तुत किया गया है। विकासवाद के सम्बन्ध में यहाँ कुछ न लिखने का कारण यह है, कि विकासवाद दर्शन-शास्त्र न रहकर वह विज्ञान का ही एक अंग बन गया है। विकासवाद में जीव विज्ञान, और जड़-विज्ञान के सम्बन्ध में जो अभी तक शोध चल रहा है, उसके सम्बन्ध में जो नवीन मत स्थापित हो रहे हैं, उन सब को देखते हुए उसे दर्शन की संज्ञा देना कठिन है । विकासवाद ने जो तथ्य आज प्रस्तुत किए हैं-मानव का मन और मस्तिष्क उन्हें देखकर चकित है। विकासवाद की पद्धति शुद्ध दार्शनिक न होकर विज्ञानवादी अधिक है । यह शाखा आज अपना स्वतन्त्र रूप में अनुसंधान कर रही है। इसके अनुसंधानों का अन्तिम निर्णय क्या होगा? यह कहना सरल नहीं है। विकासवाद के सम्बन्ध में भी विशेष रूप में आगे लिखा जाएगा । परन्तु दर्शन क्या है ? उसका स्वरूप क्या है ? उसकी सीमा में कौन से तत्त्व आ सकते हैं ? इसी उद्देश्य को लेकर यहाँ लिखा गया है। एक बात ध्यान में रहे, कि भारतीय-दर्शन और पाश्चात्य-दर्शन दोनों अपनी-अपनी पद्धति से ज्ञान-मीमांसा और तत्त्व-मीमांसा की व्याख्या करते हैं । आचार-पीमांसा की भारत की प्रत्येक दर्शन शाखा ने दर्शन का ही Jain Education International For Private & Personal Use Only Fol www.jainelibrary.org

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