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कम तत्व मीमांसा ५६ उच्च कुल भी कहते हैं। निन्दनीय कुल एवं प्रशंसनीय। अन्तराय कर्म के कारण जीव को अभोष्ट वस्तु की प्राप्ति नहीं है । वाञ्छित वस्तु की प्राप्ति में बाधा पड़ जाती है। यह कर्म जोव के वीर्य गुण का घातक होता है । कर्म के दो भेद भी हैं-धाति कर्म और अघाति कर्म । घाति कम के भी दो भेद हैं-सर्वघाति और देशघाति । जैसे मनुष्य का खाया हुआ भोजन आमाशय में जाकर, मांस, मज्जा, रुधिर और रस रूप में परिणत हो जाता है, वैसे ही जीव के द्वारा गृहीत कर्म पुद्गल भी आठ कर्मों में विभक्त हो जाते हैं। अष्ट कर्मों को दश दशा :
___कर्मों के मूल भेद आठ हैं । परन्तु उत्तर भेद अनेक हैं, जिनका परिबोध कर्म ग्रन्थों से किया जा सकता है। यहां पर कर्मों की दश दशाओं का संक्षेप में कथन है
१. बन्ध । २. उत्कर्ष । ३. अपकर्ष । ४. सत्ता। ५. उदय । ६. उदीरणा। ७. संक्रमण । ८. उपशम । ६. निधत्ति । १०. निकाचना।
बन्ध का अर्थ है-कर्म पुद्गलों का जीव के साथ सम्बन्ध हो जाना। यह पहली दशा है । इसके बिना अन्य नव दशा नहीं हो सकती है। इसके चार भेद हैं-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश बन्ध । उत्कर्ष का अर्थ है-कर्मों की स्थिति और अनुभाग में वृद्धि हो जाना । अपकर्ष का अर्थ है-- कर्मों को स्थिति एवं अनुभाग में कमी का हो जाना। सत्ता का अर्थ हैबन्ध के तुरन्त बाद ही कर्म अपना फल नहीं देता, कुछ समय बाद ही उसका फल मिलता है। जब तक कर्म फल नहीं देता, तब तक वह जीव के बद्ध रहता है, यही है, कम की सत्ता दशा । जैसे भंग पोते के साथ ही नशा नहीं चढ़ता, कुछ समय बाद ही उसका प्रभाव पड़ता है, वैसे ही कर्म भी कुछ समय तक सत्ता में रहकर अपना प्रभाव डालता है । सत्ता काल को अबाधा
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