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जन दर्शन की तत्व-मीमांसा ३७ और पुद्गल की पर्यायों द्वारा ही प्रकट होते हैं, अन्यथा नहीं। परमाणु के प्रदेश नहीं होते। एक परमाणु जितने आकाश को घेरता है, आकाश का उतना भाग प्रदेश कहा जाता है। अस्तिकाय की व्याख्या: ।
अस्ति का अर्थ विद्यमान भी होता है । यह अस्तित्व गुण समस्त द्रव्यों में पाया जाता है, अतः उनको अस्ति कहा गया है। काय शब्द 'चि उपचये' धातु से बना है। इसके अनुसार अनेक प्रदेशों के संचय अथवा समुदाय को काय कहते हैं। जिसमें ये दोनों बातें होती है, उसको अस्तिकाय कहते हैं। इस व्याख्या के अनुसार भी जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश ये पाँच द्रव्य अस्तिकाय हैं । काल द्रव्य अस्ति होते हुए भी काय अर्थात् बहु प्रदेशी नहीं है, किन्तु एक प्रदेशी है। वह काय नहीं हो सकता। उसे काय नहीं कहा गया है।
एक जीव में असंख्यात प्रदेश होते हैं, क्योंकि वह असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में फैला हुआ हो सकता है, जबकि केवली समुद्घात करते हैं। लोक में परिव्याप्त होने से धर्म तथा अधर्म भी असंख्यात प्रदेशी हैं । अलोकाकाश अनन्त प्रदेशी है। पुद्गल के दो भेद हैं-अणु और स्कन्ध । पुद्गल के अविभागी अंश को अणु कहते हैं । वह एक प्रदेशी होता है । पुद्गल संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशो हो सकता है । काल द्रव्य के कालाणु एक-एक प्रदेश हैं, वे परस्पर सम्बन्ध को प्राप्त नहीं होते । अनेक कालाणुओं का एक स्कन्ध नहीं बनता। अतः वह बह प्रदेशी भी नहीं हो सकता। अतः काल की अस्तिकाय द्रव्यों में परिगणना नहीं की जाती। यद्यपि पुद्गल का एक परमाणु, एक प्रदेशी ही है, तथापि वह अनेक प्रदेशों के धारक नाना प्रकार के स्कन्धों से मिलने के कारण बह-प्रदेशी कहा जाता है। अनेक कालाणु मिलकर एक स्कन्ध नहीं बन सकते । क्योंकि कालाणओं में स्निग्ध-रूक्ष गुण नहीं पाए जाते, क्योंकि वे अमूर्त हैं। अतः काल को कायवान् अर्थात् बहु प्रदेशी नहीं माना है। पुद्गल का एक परमाणु आकाश के जितने क्षेत्र को घेरता है, उतने क्षेत्र को प्रदेश कहा गया है। प्रदेश अपने प्रदेशी से कभी अलग नहीं होता है, जबकि परमाणु अपने स्कन्ध से मिलता-बिछुड़ता रहता है । यही प्रदेश और परमाणु में अन्तर है । काल द्रव्य :
काल द्रव्य अगुरु-लघु है, अमूर्त है। अन्य द्रव्यों के परिणमन में निमित्त होना, उसका लक्षण है। जिस प्रकार कुम्भकार के चाक के नीचे
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