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नव पदार्थ
के स्वभाव का निर्माण प्रकृति बंध है । उसके कालमान का निर्धारण स्थिति बंध है। उसके फल देने की शक्ति का नाम अनुभाग बंध है।
बारहवीं ढाल में बताया गया है कि आत्मा की कर्मों से मुक्ति ही मोक्ष है । मोक्ष के सुख शाश्वत हैं । इन सुखों का कभी अंत नहीं होता। ये अनंत सुख जीव के स्वाभाविक गुण हैं।
देवों के सुख अत्यधिक और अपरिमित होते हैं । परन्तु तीनों काल के देव सुख एक सिद्ध भगवान के सुख के अनन्तवें भाग की भी बराबरी नहीं कर सकते ।
इस ढाल में सिद्धों के पन्द्रह भेदों का भी वर्णन किया गया है। इससे जैन धर्म की सार्वजनिकता सिद्ध होती है । सिद्ध होने के लिए जैन साधु का वेष ही जरूरी नहीं है । अन्य वेष में भी साधु सिद्ध हो सकता है। यहां तक कि गृहस्थ वेष में भी मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
जीव का मोक्ष तो इस लोक में ही हो जाता है । वह यहीं सिद्ध बन जाता है, फिर एक ही समय में लोकांत तक पहुंच कर स्थिर हो जाता है ।
तेरहवीं ढाल में आचार्य भिक्षु ने इस मत का खंडन किया है कि जीव और अजीव के अतिरिक्त अवशेष सातों पदार्थ जीव- अजीव दोनों हैं । उन्होंने कहा जीव जीव है, अजीव अजीव है। आश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष जीव के भेद हैं । पुण्य, पाप और बंध अजीव के भेद हैं। यही सच्ची श्रद्धा है । जो नौ तत्त्वों को सम्यग् रूप से समझता है उसे ही सम्यक्त्व प्राप्त होता है ।
इस कृति में १३ ढालों में कुल ६४ दोहे और ६८० गाथाएं हैं।
१. नव पदार्थ, ढा. १२.२