Book Title: Aadhyatmik Aalok Part 01 and 02
Author(s): Hastimal Maharaj, Shashikant Jha
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 11
________________ आध्यात्मिक आलोक बीज राख फल भोगवे, ज्यों किसान जग मां हि। त्यों चक्री नृप सुख करे, धर्म विसारे नाहिं । महाराज श्रेणिक इसी उच्च आदर्श एवं उद्देश्य को लेकर प्रभु के समक्ष उपस्थित हुआ था । उसके पास किसी भी वस्तु की कमी नहीं थी । भण्डार भरा हुआ था। फिर भी उसने शासन सेवा के लिये राज-रानी और राज-पुत्रों को अर्पण कर दिया । कितनी बड़ी साधना है यह ? इसलिये आचार्यों ने कहा है-जो अविरति होकर भी संघ में भक्ति रखता और शासन की उन्नति करता है, वह प्रभावक श्रावक . आज के गृहस्थ को धर्म और अर्थ दोनों में सुन्दर सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है। धर्म को साध्य के रूप में तथा अर्थ को साधन रूप में ग्रहण करने से ही स्थिति का सुधार हो सकता है। यदि धर्म साधना का परित्याग कर केवल अर्थ संचय को ही प्रमुखता दी गई तो मनुष्य और पशु के जीवन में कोई अन्तर नहीं रहेगा। सदगृहस्थ के लिये यह आवश्यक है कि अर्थ साधन के साथ धर्म को महत्व की दृष्टि से देखता रहे, और उसका सर्वथा परित्याग नहीं करे। __ श्रेणिक की तरह नगर के गणमान्य सद्गृहस्थ भी भगवान् की सेवा का लाभ लेते थे, उनमें आनन्द का नाम प्रमुख है। वह वाणियग्राम नगर का एक करोड़पति सेठ था। उसके पास धन और मन दोनों थे। वह अपने परिवार की तरह लोक में भी विश्वासपात्र था। सुख सामग्नियों में किसी बात की कमी नहीं थी। उसका घर सुख सम्पदाओं से भरपूर था । सुयोग से सुशीला शिवानन्दा-सी जीवन-संगनी पाकर उसका जीवन और भी सुखमय बन गया । एक बार अपने नगर में भगवान महावीर के पधारने की बात सुनकर वह भी सेवा में गया और प्रभु का सदुपदेश सुनकर उसका नैतिक जीवन चतुर्गुणा चमक उठा एवं उसमें पर्याप्त बल आ गया । आनन्द ने सोचा कि प्रभु का मार्ग सच्चा है । प्राणी जब तक पाप का सम्पूर्ण त्याग नहीं करता, संताप मुक्त नहीं हो सकता । मुझे आरम्भ और परिग्रह का त्याग करना चाहिये और जब तक इनके सम्पूर्ण त्याग का सामर्थ्य न हो तब तक इनका परिमाण तो जरूर कर लेना चाहिये। इस प्रकार उसने इनकी मर्यादा करली और अपने सद्गुणों की सौरभ से समस्त वातावरण को सुरभित बना दिया । आज भी वह सबके लिये अनुकरणीय है। सुयोग्य गृहिणी की आवश्यकता - आनन्द के धार्मिक जीवन की साधनाओं में शिवानन्दा जैसी सुशीला और कुशल पत्नी का भी बड़ा योग था। उसके अभाव में शायद ही इस कुशलता से साधना के बीहड़ पथ को वह पार कर पाता । यह एक मानी हुई बात है कि

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